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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी संदेशा भेज कर उनके दर्शन की अनुमति मांगी। महाराज की अनुमति मिलने पर वह लोग उनके दर्शन को आए । ___तब मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज ने पूज्य महाराज से निवेदन किया "गुरुदेव ! आपकी अनुमति हो तो मैं इनसे कुछ वार्तालाप करना चाहता हूं।" पूज्य महाराज के अनुमति देने पर श्री मुनि सोहनलाल जी महाराज ने विशन चन्द आदि तपागच्छियों से निम्नलिखित प्रश्न किये १. आप लोग प्रतिमा जी की आशतना ८१ मानते है। मो प्रतिमा जी के अतिशय कितने हैं ? जिस प्रकार तीर्थकर भगवान् के जन्म के अतिशय, दीक्षा के अतिशय तथा केवल ज्ञान के अतिशय पृथक पृथक हैं, उस प्रकार प्रतिमा जी के अतिशय कौन से है ? २. भगवान् ने दया का उपदेश दिया है अथवा हिंसा का? यदि हिंसा उपदेश मानते हो तो नवकोटि प्रत्याख्यान किस प्रकार रह सकता है और यदि दया का उपदेश मानते हो तो आप का बर्ताव सूत्रानुसार नहीं है। ३. जब आप लोग भविष्यत् काल में मोक्ष होने वाले जीवों की 'नमोत्युणं' पाठ से वंदना करते हैं तो जिनमंदिर में शिव लिंग तथा श्री कृष्ण जी की प्रतिमाओं की स्थापना क्यों नहीं की जाती ? क्योंकि आपके मत में शिव जी को अव्रत सम्यक् दृष्टि श्रावक माना गया है। ४. जब द्वारिका जी भस्म हो गई तो द्वारिका जी में जिन मन्दिर थे या नहीं ? यदि वहां जिन मंदिर थे तो वह भस्म ।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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