SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रधानाचार्य श्री साहनलाल जी यह लोग उनके अनेक प्रकार के बहलाने, फुसलाने, डांटने और फटकारने से भी अपनी २ प्रतिज्ञाओं को तोड़ने को तयार न हुए। तथापि इनमें से गोविन्दराय पर तो इतनी अधिक सख्ती की गई कि उसका वर्णन करना कठिन है। उसके घर वालों ने उसके साथ मार पीट तक की। अन्त में उस वेचारे के परिणाम गिर गए और उसने दीक्षा लेने का विचार छोड़ कर अपना विवाह करवा लिया। जब श्री सोहनलाल जी ने देखा कि उनके घर वाले उनको दीक्षा लेने की अनुमति नहीं दे रहे तो वह अपने शेष तीन साथियों-शिवदयाल, गणपतराय तथा दूल्होराय सहित पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज के पास अमृतसर चले गए। , यहां आकर आपने पूज्य श्री से निवेदन किया _ तरणतारण गुरु जी! हमलोग इस दु.खदायक संसार सागर के प्रबल ज्वार भाटे से अब घबरा गए हैं। हमलोग यह प्रतिज्ञा कर चुके हैं कि जिन दीक्षा ग्रहण करने के अतिरिक्त हम और कोई मार्ग अंगीकार नहीं करेंगे। किन्तु हमारे घरवाले हमको इसके लिए अनुमति नहीं दे रहे । आज लगभग पांच वर्ष से हमारा उनके साथ झगड़ा मचा हुआ है । हम उनसे अनुमति मांगते २ थक गए । अव आप कृपा कर हमको जिनदीक्षा देकर संसार सागर में डूबते हुओं का उद्धार करें। हम लोग सब ओर से निराश होकर बड़ी भारी आशा लेकर आपके पास पाए हैं।" श्री सोहनलाल जी आदि चारों मित्रों के यह वचन सुन कर पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज बोले "वत्स सोहनलाल ! तुम्हारी धार्मिकता को हम तुम्हारी बाल्यावस्था से ही देख रहे हैं। तुम्हारे मित्र भी वैराग्य के मार्ग
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy