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________________ १८८ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सोहनलाल-यह मेरी बहिन है। जो साई अपनी बहिन की इज्जत को लुटते हुए खड़ा खड़ा देखता रहे उसके जीवन को धिक्कार है। तुम्हे इस अबला का सतीत्व लूट कर क्या मिलेगा ? तुम क्षणिक सुख के लिये एक अवला के जीवन को नष्ट करके अपने लिये नरक का द्वार क्यों खोल रहे हो ? । सोहनलाल जी के इन वचनों को सुन कर वह चारों क्रोध में भर गए और कहने लगे "लातों के देवता बातों से नहीं माना करते । देखो। इसके पास कोई भी शस्त्र नहीं है, फिर भी यह किस प्रकार अकड़ रहा है। जान पड़ता है इसको यहां इसकी मौत' ही बुला कर लाई ऐसा कह कर उन मे से एक ने सोहनलाल जी पर लाठी का वार किया। सोहनलाल जी प्रतिदिन व्यायाम किया करते थे। इस कारण वह लाठी के दांव पेंच खूब जानते थे। उन्होंने उसके वार को बचा कर ऐसी लात जमाई कि लाठी उसके हाथ से छूट कर गिर पड़ी । सोहनलाल जी ने फुर्ती से लाठी उठा कर उस पर ऐसी जोर से वार किया कि वह उसको सहने में असमर्थ हो कर गिर पड़ा। उसके गिरने पर शेष तीनों ने क्रोध में भर कर अपनी अपनी तलवारे निकाल ली। वह सोहनलाल जी पर वार पर वार करने लगे। किन्तु सोहनलाल जी उन के सभी वारों को लाठी पर झेलते हुए उन पर अपनी लाठी से चोट भी करते जाते थे। इस बीच सोहनलाल जी' की लाठी का वार एक' के ऊपर ऐसा करारा लगा कि वह भी गिर पड़ा तथा' तलवार उसके हाथ से छूट कर युवती के पास आ गिरी। अब तो युवती भी सोहनलाल जी के अटल धैर्य तथा अद्भू त साहस को' देख कर अपनी पीड़ा को भूल कर फुर्ती से उठ कर खड़ी हो
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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