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सती पार्वती से वार्तालाप
सोचा मेहावी वयणं पंडियाणं निसामिया ।
आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुत स्कंध, अध्ययन ८, उद्देशक ३ चतुर पुरुषों को पंडितों के वचन सुन कर उनको हृदय में धारण कर समता रखनी चाहिये ।
संवत् १९३२ का चातुर्मास्य समाप्त कर महासती पार्वती जी महाराज ने स्यालकोट की ओर विहार किया। उनकी व्याख्यानशैली अद्भुत थी। तीव्र प्रतिभा के कारण आपने अल्प समय मे ही विशेष ख्याति प्राप्त कर ली थी, जिससे आपके संयम की वृद्धि के साथ २ आपके यश की वृद्धि भी बराबर होती जाती थी। महासती के पधारने के समाचार से पसरूर की जनता मे उत्साह को लहर दौड़ गई। पसरूर के मुख्य २ जैन श्रावकों-लाला गंडे शाह जी, लाला भूला शाह जी तथा लाला पञ्ज शाह जी आदि भाइयों के हृदय प्रसन्नता से भर गए। महासती का व्याख्यान सुनने के लिये जैन तथा जैनेतर सभी जनता एकत्रित हुई। इस व्याख्यान के सुनने को द्वादशव्रतधारी धर्मप्राण सोहनलाल जी भी आए। अब महासती जी ने अपनी अमोघवाणी द्वारा निम्न प्रकार से देशना देनी प्रारम्भ की