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(घ) क्या जैनधर्म शंकराचार्य के बाद चला ? इनमें से प्रथम तथा दूसरी बात केवल लोगों के अोठों में है। आज भी ऐसे मूों की कमी नहीं जो जैन धर्म को शंकराचार्य के बाद चला हुआ अथवा बौद्ध धर्म की शाखा मानते है। किन्तु उनको यह पता नहीं कि यह बात आज तक किसी भी ऐतिहाहिक विद्वान् ने नहीं लिखी है। वास्तव में इतिहास का कोई विद्वान ऐसी अनर्गल बात को अपनी लेखनी से लिख ही नहीं सकता। ___ स्वामी शंकराचार्य के ही शिष्य द्वारा लिखे हुए 'शंकर दिग्विजय' नामक ग्रन्थ में उज्जैन के राजा की सभा में स्वामी शंकराचार्य तथा जैनियों के शास्त्रार्थ का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त स्वामी शंकराचार्य द्वारा लिखे हुऐ वेदान्त सूत्र के शांकर भाष्य की टीका में उन्होंने
नैकस्मिनसन्भवात् सूत्र की टीका में जैनियों के 'सप्त भङ्गी न्याय' का खंडन किया है। यद्यपि स्वामी शंकराचार्य ने जैनियों के 'सप्त भङ्गी न्याय' के इस खंडन से पूर्व पूर्वपक्ष को समझने का लेशमात्र भी यत्न नहीं किया, किन्तु इससे उन लोगों की मूर्खता प्रकट हो जाती है जो जैनधर्म को स्वामी शंकराचार्य के बाद चला हुआ मानते हैं।
क्या जैनधर्म बौद्ध धर्म की शाखा है ? यह बात समझ में नहीं आती कि जैन धर्म को बौद्धमत की शाखा किस आधार पर कहा गया। बौद्ध त्रिपिटकों में स्थान स्थान पर भगवान महावीर स्वामी को गौतम बुद्ध का समकालीन