________________
जितेन्द्रियता
१६१ उस महिला की यह बात सुन कर सोहनलाल जो उस घर को एक प्रतिष्ठित घराना समझ कर एक डिब्बे में कई प्रकार के हार रख कर चलने को तय्यार हो कर उससे बोले
'जब दूकान में कोई और आ जावेगा तो मैं स्वयं ही आपके घर आ जाऊंगा । अभी आप चलें।' ।
यह सुन कर वह सखी वहां से चल कर युवती के पास आई। सखी से सोहनलाल जी के आभूषण दिखलाने के लिये आने का समाचार सुन कर उसने उसी समय सोलह शृङ्गार किये। अब वह पूर्णतया बन ठन कर सोहनलाल जी के आने की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ समय बाद सोहनलाल जी आभूषण लिए हुए वहां पहुंच गए। उनके आने पर उस युवती ने उनकी अत्यन्त उत्साहपूर्वक अभ्यर्थना की। फिर वह उनके दिखलाए हुए हारों को देखती हुई मुस्करा कर कहने लगी
"इस हार का क्या मूल्य है ?"
सोहनलाल जी ने हार का मूल्य बतला दिया। मूल्य सुन कर वह युवती बोली
"मैं तो वह अमूल्य हार चाहती हूँ, जो आपके पास मौजूद है। उसे प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्राणों का मूल्य भी दे सकती हूं। क्या आप उसे देने की कृपा करेंगे?"
किन्तु सोहनलाल जी उसकी गूढ बात को नहीं समझे और उन्होंने सारे हार उनके सामने रख कर कहा __ "अापको इन में जो भी हार पसन्द हो वह ले सकती हैं।"
इस पर युवती ने उत्तर दिया
"मैं इन जड़ हारों को नहीं चाहती। मैं तो चेतन हार चाहती हूँ, जो मेरे हृदय कमल को खिला सके।"