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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी पाप कर्मों का उपदेश, भूमि कुरेदना आदि व्यर्थ के कार्यो को न करने की प्रतिज्ञा करना ।
इन तीन गुणव्रतों के अतिरिक्त निम्नलिखित चार शिक्षा व्रतों का भी पालन करना
१. सामायिक व्रत -प्रातः सायं कुछ समय के लिये नियम पूर्वक सांसारिक सावध कार्यों का त्याग करके अपना समय साधु सेवा, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, जप अथवा ध्यान आदि धर्मे कार्यों में लगाना ।
२. देशावकाशिक ऋत-छटे दिशि परिमाण व्रत में जो । यावज्जीवन परिमाण किया है उस में प्रति दिन, प्रति मास अथवा प्रति वर्ष कुछ न कुछ और संकोच करते रहना ।
३. पौषध व्रत-अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा अथवा अन्य किसी दिन चारों प्रकार के आहार का त्याग कर शृङ्गार न करते हुए समस्त दोष से निवृत्त होकर अष्ट प्रहर अथवा कम से कम चार प्रहर तक धर्म ध्यान में लगे रहना।
४. अतिथिसंविभाग व्रत-साधुओं को शुद्ध आहार पानी यथाशक्ति नियमपूर्वक नित्य देते रहना। ___ यह श्रावक के बारह व्रत हैं। आज मैं तुमको इन बारह व्रतों का नियम देता हूं। - सोहनलाल-मैं गुरु चरणों की साक्षीपूर्वक इन बारहों व्रतों को ग्रहण करता हूं और प्रतिज्ञा करता हूं कि इनका यावज्जीवन निर्वाह करूंगा। .
सोहनलाल जी के इन शब्दों को सुन कर उपस्थित जनता ने गुरु तथा शिष्य दोनों की ही मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। उनमें से एक बोला