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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए महाराज श्री की सेवा में बैठ कर ज्ञानार्जन करने का निश्चय किया। महाराज श्री ने भी श्रावकवर्ग की इस ज्ञान पिपासा को शान्त करने के लिए ओजस्विनी भाषा मे निम्न प्रकार से देशना देनी आरम्भ की
जा जा बच्चइ रयणी,न सा पडिनियत्तई । अहम्म कुरणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥
__उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १४, गाथा २४ जा जा बच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राहो ॥
उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १४, गाथा २५ हे भव्य प्राणियों ! जगदोद्धारक मोक्षमार्गप्रदर्शक भगवान् महावीर स्वामी ने सम्पूर्ण जीधों के कल्याण के लिए एक अमूल्य उपदेश देते हुए कहा है कि "हे प्राणी ! समय अमूल्य है। जो दिन रात निकल जाता है वह फिर कभी लौट कर वापिस नही पाता । तब ऐसे छोटे समय वाले जीवन में अधर्म करने वाले का जीवन बिल्कुल निष्फल चला जाता है।" "जो दिन रात निकल जाता है वह फिर कभी लौट कर वापिस नहीं पाता। किन्तु सद्धर्म का प्राचरण करने वाले का वह समय सफल हो जाता है।" __ इस प्रकार जो क्षण बीत गया वह फिर नहीं लौट सकता। तुम्हारे अमूल्य जीवन की एक एक कड़ी बिखर रही है। जो प्राणी इस समय को प्रमाद मे नष्ट करता है उसका समय निष्फल जाता है। जो समय बीत गया वह तो धर्मात्माओं को भी पुनः वापिस नहीं मिलता, किन्तु जो समय धार्मिक क्रियाओं मे व्यतीत किया जाता है वही सफल होता है । अतएव तुस कायरता को दूर करके