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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी समय मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिये ।" । महासती शेरां जी के इस व्याख्यान को सुन कर श्रोतागण मुग्ध हो गए। श्री सोहनलाल जी मी महासती के व्याख्यान को एकाग्र चित्त से सुन रहे थे। इतने में महासती की दृष्टि उनके पैर से चमकते हुए शुभ लक्षणों पर पड़ी। उन लक्षणों को देख कर महासती जी को इतना हर्ष हुआ कि वह उसको अपने मन में दबा न सकी अथवा सोहनलाल जी के विशाल पुण्य ने उनको मौन न रहने दिया। उन्होंने सोहनलाल जी से कहा। ___ "सोहनलाल ! तुम्हारे पैर के लक्षणों से पता चलता है कि तुम सम्पूर्ण जैन समाज में एक प्रधान आचार्य वनकर स्थान स्थान पर जैन धर्म की विजय पताका फहराते हुए बानगरिमायुक्त कुछ ऐसे महान् एवं अलौकिक कार्य करोगे कि जिसके कारण तुम्हारी यशदुन्दुभि की ध्वनि कई शताब्दियों तक सुनाई देती रहेगी।" महासती शेरां जी महाराज के मख से इस भविष्यवाणी को सुन-कर समस्त उपस्थित जनता को परम हर्ष हुआ और वह महासती तथा सोहनलाल जी की प्रशंसा करती हुई यथा शक्ति व्रत नियम अंगीकार करके अपके २ घर गई।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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