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________________ दीनों की सहायता १११ दया के स्थान पर क्रोध ही अधिक उत्पन्न हुआ। उन्होंने यह सुनते ही कठोर शब्दों में नौकर को आज्ञा दी "देखता क्या है ? जल्दी कर ।" ___ यह सुनकर नौकर ने स्वामी की आज्ञानुसार गेहूं की बोरियों को नीचे उतार कर किसान की गाड़ी को एक ओर धकेल दिया। इसके बाद सेठ जी अपनी बग्गी को निकाल कर स्यालकोट की ओर तेजी से चल दिये। उनके इस कृत्य को देखकर बेचारा कृषक दुःखी होकर बोला___ "हे भगवन् ! क्या संसार में निर्धनों का कोई भी रक्षक नहीं है ? यह कितना दुष्ट है कि इसने मेरी गेहूँ की बोरियां कीचड़ में गिरा दी। प्रभो! उसे इसके इस अशुभ कर्म का बदला अवश्य देना।" सोहनलाल जी दूर से इस दृश्य को देखते हुए अपने घोड़े पर बैठे हुए चले आ रहे थे। उनका हृदय इस दृश्य को देखकर करुणा से भर गया। वह किसान की गाड़ी के पास आकर अपने घोड़े से नीचे उतर पड़े और कृषक को सांत्वना देने के लिये उससे बोले___ "भाई ! क्रोध मत करो। क्रोध करने से कोई भी कार्य सफल नहीं होता। यदि तू भी सेठ होता और तेरे पास भी ऐसा बलिष्ट नौकर होता और तेरे स्थान पर यहां किसी और किसान की गाड़ी होती तो ऐसी स्थिति में तू भी यही करता। ऐसी स्थिति में अपने शोक को छोड़कर अपनी गाड़ी को ठीक कर।" ऐसा कहकर उन्होंने स्वयं अपना हाथ लगाकर प्रथम उस किसान की गाड़ी का पहिया ठीक करवाया। गाड़ी ठीक हो जाने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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