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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी चोर उसका सर्वस्व चुरा कर लेगया । उसने होश में आने पर किसी से पूछा कि "मुझे किसी ऐसे सज्जन का नाम पता बतला दो, जहां मैं इस असहाय रोग अवस्था में जाकर शरण ले सकू।" . इस पर उस व्यक्ति ने उत्तर दिया "तुम पसरूर चले जाओ। वहां लाला गंडामल रहते हैं। वह तुम्हारा सब कष्ट दूर कर देगे।" यह सुन कर वह व्यक्ति प्रसन्न होता हुआ आपके पास पसरूर आया। लाला गंडामल को जब रोगी परदेशी के पसरूर आने का समाचार मिला तो आप स्वय उसके पास आए और उसकी इस अवस्था को देखकर उसे बड़े प्रेम से अपने घर ले गए। घर लाने पर आपने बड़े प्रेम से स्वयं अपने हाथों से उसकी सेवा की और चिकित्सा भी कराई । उसके रोगमुक्त हो जाने पर भी आपने उसको निर्बलता को दूर करने के लिये उसे अपने पास एक मास तक रक्खा। इसके पश्चात् आपने उसे खर्च देकर तथा अपना आदमी साथ भेज कर उसके घर भेज दिया। इस प्रकार आपके आचरण की यह विशेषता थी कि ___ 'जिसका कोई न होता उसके श्राप बन जाते थे।' एक वार लाला गंडामल खांड के व्यापार के सिलसिले में अपने आदमियों के साथ उत्तर प्रदेश गए तो वहां वही व्यक्ति मिल गया। वह आप को पहिचान कर आप को अत्यधिक आग्रहपूर्वक अपने घर ले गया। घर ले जाकर उस ने आप की बहुत सेवा की और उन के दर्शन से अपने को कृतार्थ माना। जव उस के मित्रों ने उस से लाला गंडामल का परिचय पूछा तो
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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