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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी स्तोत्र कण्ठ याद कर लिए हैं। दूसरों की सेवा करने में इसकी ऐसी लगन है कि सेवा के सामने इसे खानपान की सुध भी नहीं रहती। बाल्यावस्था में ही इसके ऐसे ऐसे कार्यों को देखकर बड़े बड़े बुद्धिमान भी चकित हो जाते है।"
माता द्वारा पुत्र की इस प्रकार प्रशंसा सुनकर आचार्य महाराज ने सोहनलाल से प्रश्न किया
"सोहनलाल ! क्या तुम ने सम्यक्त्व ग्रहण किया है ?"
सोहनलाल-गुरु महाराज ! अपनी माता जी तथा साधु साध्वियों से मैं ने सम्यक्त्व के स्वरूप को कुछ कुछ समझा तो अवश्य है, किन्तु मेरी यह अभिलाषा है कि उसको विस्तारपूर्वक समझ कर ग्रहण करू । माता जी ने कहा था कि पूज्य श्री के पधारने पर उनसे अवश्य ही सम्यक्त्व का स्वरूप समझ कर उसे ग्रहण कर लेना। सो अब मुझे वह स्वर्ण अवसर अनायास ही प्राप्त हो गया है। आप कृपा कर मुझे सम्यक्त्व का स्वरूप विस्तारपूर्वक समझा दें।
इस पर पूज्य श्री ने उत्तर दिया
"वत्स ! यदि तुम सभ्यक्त्व का लक्षण समझना चाहते हो । तो आहार पानी के बाद दिन में इस विषय पर वार्तालाप किया जा सकता है।"
__ पूज्य श्री का यह उत्तर सुन कर सोहनलाल जी को यह सोच कर बड़ा भारी हर्ष हुआ कि आज मुझे नई नई बातें सुनने को मिलेंगी। सोहनलाल मन में यह सोच कर आचार्य महाराज की वन्दना करके अपने घर चले गए।
जब महाराज आहार पानी से निवृत्त हो गए तो सोहनलाल अपने बाल मित्रों को अपने साथ लेकर पूज्य श्री की सेवा में ।