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________________ अद्भुत न्याय न्यायात्पथात् प्रविचलन्ति पदं न धीराः धीर पुरुप न्याय के मार्ग से एक पग भी नहीं हटते । न्याय शान्ति का आधार है। न्याय के विना देश एवं समाज में शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती। जब कोई व्यक्ति अपने से अधिक बल वाले अथवा अधिक संघ शक्ति वाले व्यक्ति द्वारा पीड़ित होता है तो वह न्यायालय की शरण लेता है। किन्तु आजकल के न्यायालयों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई है। सब जगह घूसखोरी, पक्षपात तथा भृष्टाचार का वोल वाला है, जिससे अत्याचारी तथा साधनसम्पन्न व्यक्ति ही वहाँ भी सफलता प्राप्त करते हैं तथा निर्धन लोग अत्याचारों की चक्की में इस प्रकार पीसे जाते हैं कि वह फिर सदा के लिये शिर उठाना भूल जाते हैं । उनका यहां तक पतन होता है कि वह अत्याचार की धधकती भट्टी में जलते रहने मे ही अपनी रक्षा समझते हैं । निर्धन का कोई साथी नहीं होता। यदि कोई उसको कभी साथ देता भी है तो साधनसम्पन्न व्यक्ति उसको निर्धन की सहायता करने से रोक देता है। न्यायालयों की दशा यह है कि वहां तथ्य का अप्रत्यक्ष निर्णय करने का अधिकार न्यायाधीशों को नहीं दिया जाता | जो कोई
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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