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सत्य में निष्ठा क्या हमसे कभी भूल नहीं होती ? आज मैं अलमारी में से गेंद निकाल रहा था कि शीघ्रता के कारण दर्पण मुझसे गिर गया
और गिरते ही टूट गया। आप इस अपराध का जो चाहें मुझे दंड दें, जिससे मैं भविष्य में ऐसा अपराध न करू।
पुत्र की इस प्रकार की निर्भीकता, सत्यप्रियता तथा दृढ़ता देखकर शाह मथुरादास जी का क्रोध पानी पानी होगया और उनको क्रोध के स्थान पर ऐसी भारी प्रसन्नता हुई कि उन्होंने सोहनलाल को गोद में उठा कर उसे प्यार करते हुए कहा___"बेटा, यदि तुममें यह गुण सदा इसी प्रकार बने रहे तो ऐसे २ सहस्र दर्पणों के टूट जाने पर भी मुझे दुःख न होगा। मुझे तो दर्पण की अपेक्षा सत्यनिष्ठ बेटा अधिक प्यारा है।"
नौकर चाकर तो सोहनलाल जी के इस व्यवहार से एक दम अवाक रह गए।