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जैन पूजाजलि सम्यक दर्शन तो स्व लक्ष से ही हो सकता है तत्काल ।
जब तक पर का लक्ष तभी तक मिथ्या दर्शन का जजाल ।। धर्म भावना अर्घ चढाऊँ आकिंचन मन लाऊँ। ब्रहाचर्य निजशील पयोनिधि आत्मधर्म चितलाऊँ ॥धर्म धुरधर ।।९।। ॐ ही श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंच कल्याणक त्रयोदशी बैशाख शुक्ल की सुरबाला पगल गाए । तज सर्वार्थ सिद्धि का वैभव देवि सुव्रता उर आए । स्वप्न फलो को जान मुदित माता मन ही मन मुसकाए। जय जय धर्मनाथ तीर्थकर रत्न वृष्टि अनुपम छाए ॥१।। ॐ ही बैशाख शुक्ल त्रयोदश्या गर्भकल्याणक प्राप्ताय श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । माघ शुक्ल की त्रयोदशी को रत्नपुरी मे जन्म हुआ । राजा भानुगज हर्षाये इन्द्रो का आगमन हुआ ।। पाडुक शिला विराजित करके क्षीरोदधि से नव्हन हुआ । जय जय धर्मनाथ त्रिभुवनपति तीन लोक आनद हुआ ।।२।। ॐ ह्री श्री माघशुक्लत्रयोदश्या जन्मकल्याणक प्राप्ताय धर्मनाथ जिनेंद्राय अयं नि । शुक्लमाघ की त्रयोदशी को प्रभु का तप कल्याण हुआ । भवतन भोगो से विरक्त हो उर मे धर्म ध्यान हुआ । राज्यपाट सब त्याग पालकी मे विराज वन मे आए । तरु दधिपर्ण तले दीक्षा धर धर्मनाथ प्रभु हर्षाए ॥३॥ ॐ ह्री माघशुक्ल त्रयोदश्या तप कल्याण प्राप्ताय श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । पोष शुक्ल पूर्णिमा मनोहर जब छास्थ काल बीता । केवलज्ञान लक्ष्मी पाई चार घाति अरि को जीता ।। हुए विराजि समवशरण मे अन्तरीक्ष प्यासन धार । जय जय धर्मनाथ जिनवर शाश्वर उपदेश हुआ सुन्दरा।४।। ॐ ही पौषशुक्ल पूर्णिमायाँ ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय अयं नि ।