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जैन पूजांजलि व्याकुल मत हो मेरे मनवा कट जाएगी दुख की रात ।
दिन के बाद रात आती है और रात के बाद प्रभात ।। सम्भवजिन का दर्शन करके सम्यकदर्शन प्राप्त करूँ। अभिनन्दन प्रभु पद अर्चन कर सम्यकज्ञान प्रकाश करूँ।।३।। सुमतिनाथ का सुमिरण करके सम्यकचारित हृदय धरूँ । श्री पदमप्रभु का पूजन कर रत्नत्रय का वरण करूँ।। श्री सुपार्श्व की स्तुति करके मोह ममत्व अभाव करूँ। चन्दाप्रभु के चरण चित्त घर चार कषाय अभाव करूँ ।।५।। पुष्पदन्त के पद कमलो मे बारम्बार प्रणाम करूँ। शीतल जिनका सुयशगान कर शाश्वत शीतल धाम वरूँ ।।६।। प्रभु श्रेयासनाथ को बन्दू श्रेयस पद की प्राप्ति करूँ।। वासुपूज्य के चरण पूज कर मैं अनादि की भांति हरूँ ॥७॥ विमल जिनेश मोक्ष पद दाता पच महाव्रत ग्रहण करूँ। श्री अनन्तप्रभु के पद बन्दू पर परणति का हरण करूँ ।।८।। धर्मनाथ पद मस्तक धर कर निज स्वरुप का ध्यान करूँ। शातिनाथ की शांत मूर्ति लख परमशांत रस पान करूं ॥९॥ कुथनाथ को नमस्कार कर शुद्ध स्वरुप प्रकाश करूँ। अरहनाथ प्रभु सर्वदोष हर अष्टकर्म अरि नाश करूँ।।१०।। मल्लिनाथ की महिमा गाऊ मोह मल्ल को चूर करूँ। मुनिसुव्रत को नित प्रति ध्याऊ दोष अठारह दूर करूँ ॥१९॥ नमि जिनेश को नमनकरूँ मैं निजपरिणति मे रमण करूँ। नेमिनाथ का नित्य ध्यान धर भाव शुभा-शुभ शमनकरूँ ।।१२।। पार्श्वनाथ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर भव भार हरूँ । महावीर के पथ पर चलकर मैं भवसागर पार करूँ ॥१३॥ चौबीसो तीर्थकर प्रभु का भाव सहित गुणगान करूँ । तुम समान निज पद पाने को शुद्धातम का ध्यान करूँ ।।१४।। ॐ ह्रीं श्री वृषभादिवीरातेभ्यो अनर्षपद प्राप्तये अय नि स्वाहा ।