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श्री वर्तमान चौबीसतीर्थकर पूजन
१६९ परम पूज्य भगवान मात्मा है अनंत गुण से परिपूर्ण ।
मंतरमुखाकार होते ही हो जाते सब कर्म विचूर्ण ।। आत्मज्ञान वैभव के अक्षत से अक्षय पद पाऊँगा।' भवसमुद्र तिर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ।। वृक्ष. ।।३।। ॐ ही श्री वृषभादि वीरांते यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं नि स्वाहा । आत्मज्ञान वैभव के पुष्पों से मैं काम नशाऊँगा । शीलोदधि पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा । वृष. ॥४॥ ॐ हीं श्री वृषमादि वीरातेभ्यो कामवाण विश्वसनाय पुष्प नि. । आत्मज्ञान वैभव के चरु ले क्षुधा व्याधि हर पाऊँगा । पूर्ण तृप्ति पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ।वृष ।।५।। *ही श्री वृषभादि वीरातेभ्यो क्षुधा रोग विनाशना पनवेचं नि । आत्मज्ञान वैभव दीपक से भेद ज्ञान प्रगटाऊँगा । मोहतिमिर हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥वृष ॥६॥ ॐ ही श्री वृषभादि वीरातेभ्यो मोहन्धकार विनाशनाय दीप नि । आत्म ज्ञान वैभव को निज मे शुचिमय धूप चढाऊँगा । अष्ट कर्म हर चिदानद चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ।वृष ॥७॥ ॐ ही श्री वृषभादि वीरानेभ्यो अष्ट कर्म विनाशनाय धूपं नि । आत्म ज्ञान वैभव के फल से शद्ध मोक्ष फल पाऊँगा। राग द्वेष हर चिदानद चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा । ।वृष ।।८।। ॐही श्री वृषभादि वीरातेभ्यो महा मोक्ष प्राप्ताय फलनि । आत्म ज्ञान वैभव का निर्मल अर्घ अपूर्व बनाऊँगा । पा अनर्घ पद चिदानद चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा । वृष ॥९॥ ॐही श्री वृषमादि वीरातेभ्यो अनर्ष पद प्राप्ताय अर्घ्य नि ।
जयमाला भव्य दिगम्बर जिन प्रतिमा नासाग्र दृष्टि निज ध्यानमयी । जिन दर्शन पूजन अघ नाशक भव भव में कल्याणमयी ॥१॥ वृषभदेव के चरण पखा मिथ्या तिमिर विनाश करूं। अजितनाथ पद बन्दन करके पंच पाप मल नाश करूँ ॥२॥