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जैन, पूजांजलि रुचि विपरीत नाश करने को अब प्रतिकुल दृष्टि से ऊब । निज अखण्ड ज्ञायक स्वभाव समशिव सुख सागर में ही दूब ।।
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विशेष पर्व पूजन जैन आगम में इन पर्यों का विशेष महत्व है। इन पदों के महत्व को दशनि वाली पौराणिक कथायें इनसे जुड़ी हुई है। ये पर्व हमें सांसारिक प्रयोजनो से हटाकर धर्य आराधना के लिए प्रेरणा देते है । इन पूजनो मे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक पूजनो मे चारो अनुयोगो के सारभूत तत्त्व गर्मित हैं । अतः प्रत्येक आत्मार्थी बन्धु इन पदों पर इन पूजनो के माध्यम से धर्म आराधना करके अनत सुख को प्राप्त करे। यही कामना है।
श्री क्षमावाणी पूजन क्षमावाणी का पर्व सुपावन देता जीवों को संदेश । उत्तम क्षमाधर्म को थारों जो अतिभव्य जीव का वेश ।। मोह नींद से जागो चेतन अब त्यागो मिथ्याभिवेश । द्रव्य दृष्टि बन निजस्वभाव से चलो शीघ्र सिद्धोंके देश।। क्षमा, मार्दव, आर्जव, सयम, शौच, सत्य को अपनाओ । त्याग, तपस्या, आकिंचन, व्रत ब्रह्मचर्य मय हो जाओं ।। एक धर्म का सार यही है समता पय ही बन जाओं । सब जीवों पर क्षमा भाव रख स्वय क्षमा मय हो जाओं ॥ क्षमा धर्म की महिमा अनुपम क्षमा धर्म ही जग मे सार । तीन लोक मे गूज रही है क्षमावाणी की जय जयकार ॥ ज्ञाता दुष्टा हो समग्र को देखो उत्तम निर्मल भेष । रागों से विरक्त हो जाओ रहे न दुख का किंचित लेश ।। ॐ ही श्री उत्तमक्षमा धर्म अत्र अवतर-अवतर सवौषट, अत्र तिष्ठ- तिष्ठ ठ ठ, अत्रमम् सनिहितो भव भव वषट् । जीवादिक नव तत्वो का श्रद्धान यही सम्यक्त्व प्रथम । इनका ज्ञान ज्ञान है, रागादिक का त्याग चरित्र परम ।।