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श्री नित्यमा पूजन नाक विवंच देवानर पति के काटे प संती चार ।
रहा सदा पर्याय दृष्टि ही एव का किला नहीं सतकार ।। पंचशतक सुत दशरथ अप के देश कलिंग नृपति वंदन । बालि महाबलि मुनिस्वामी नामकुमार आदि वन्दन ॥२९॥ कामदेव बलभद्र चक्रवर्ती जो मोक्ष गए वन्दन । भरत क्षेत्र से मुनि अनंत निर्वाण गए सबको वन्दन।।३०।। नव देवो को बन्दन कर शुद्धातम को करूँ नमन । मोह राग रुष का अभाव कर वीतरागता करूँ ग्रहण।।३१।। प्रभो नित्यमह पूजन करके निज स्वभाव में आ जाऊँ। तीन समय सामायिक साधू निज स्वरूप में रम जाऊँ।।३२।। श्री जिन पूजन का उत्तम फल सम्यक दर्शन प्रगटाऊँ । ग्यारह प्रतिमा पाल साधु पद लेकर निजआतप ध्याऊँ ॥३३॥ प्रायश्चित विनय वैय्यावृत आलोचना हदय लाऊँ। प्रतिक्रमणव्युत्सर्ग करूँ मैं दोष नाश शिवपद पाऊँ ।।३४।। उपसगों से ही नहीं डिगू परिषह जय कर समता लाऊँ। गुणस्थान आरोहण क्रम से श्रेणी चहूँ मोक्ष पाऊँ ।।३५।। निज स्वभाव साधन के द्वारा वीतराग निज पद पाऊँ । श्री जिन शासन के प्रभुत्व से मोक्ष मार्ग पर चढूँ जाऊँ ॥३६।। ॐही श्री नित्यमह समुच्चय जिनेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये पूर्णाऱ्या नि ।
अनुपम पूजा नित्यमह, स्वर्ग मोक्ष दातार । निज आतम जो ध्यावते, हो जाते भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ही श्री नित्यमह समुच्चय सर्व जिनेभ्यो नम