________________
२०२ ६. वैराग्यत्यागादि जो साये आत्मज्ञान होय तो __ सफळ छे, अर्थात् मोक्षनी प्राप्तिना हेतु छे, अने ज्या
मात्मज्ञान न होय त्या पण जो ते आत्मज्ञानने अर्य करवामा आवता होय, तो ते आत्मज्ञाननी प्राप्तिना हेतु छे.
७. जेना चित्तमा त्याग भने वैराग्यादि साधनो उत्पन्न थया न होय तेने ज्ञान न थाय, भने जे त्याग विरागमा ज अटकी रही, आत्मज्ञाननी आकाक्षा न राखे, ते पोतानु भान भूले, अर्थात् अज्ञानपूर्वक त्यागवैराग्यादि होवाथी ते पूजासत्कारादिधी पराभव पामे, अने आत्मार्थ चूकी जाय
८. ज्या ज्या जे जे योग्य छे, त्या त्या ते ते समजे, अने त्या त्या ते ते आचरे ए आत्मार्थी पुरुपना लक्षणो छे.
९. पोताना पक्षने छोडी दई, ते सद्गुरुना चरणने सेवे ते परमार्थने पामे, अने आत्मस्वरूपनो लक्ष तेने थाय. ___१० आत्मज्ञानने विषे जेमनी स्थिति छ, एटले, परभावनी इच्छाथी जे रहित थया छे; तथा शत्रु, मित्र, हर्ष, शोक, नमस्कार, तिरस्कारादि भाव प्रत्ये जेने समता वर्त