SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मसिद्धि अर्थ १ जे आत्मस्वरूप सम या विना भूतकाळे हु अनत दुख पाम्यो, त पद जेणे समजाय एटले भविष्यकाळे उत्पन थवा योग्य एवा अनत दुस पामत ते मूळ जेणे छेशु एवा श्री सदगुरु भगवानन नमस्कार कर छु । २ आ वर्तमान काळमा माक्षमाग घणो लाप यई गपो छ ज मोघमार्ग आत्मार्थीने विचाग्वा माटे (गुरु शिष्यना सवादरूपे) अत्रे प्रगट कहीए छोए ३ काई क्रियाने जवळगी रहा छे अन कोई शुष्क नानने ज पळगी रह्या छे, एम मोक्षमार्ग माने छे, जे जोईने दया आवे छ ४ बाह्य नियामा ज मात्र गचा रहा छ अतर कई भदायु नयी, अने ज्ञानमागने निषेध्या करे छ, त मही नियाजड वाहा छ ५ यघ मोग मात्र कल्पना छे, एवा निश्चयवाक्य मात्र वाणामां बोले छे मन तयारूप दशा पई नयी, मोहना प्रभावमा वर्ते छे, ए मही गुजनानी का छे
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy