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१३६ दिनकर विना जेवो, दिननो देखाव दीसे, शगी विना जेवी रोते, शर्वरी सुहाय छै; प्रजापति विना जेवी, प्रजा पुरतणी पेखो, सुरस विनानी जेवी, कविता कहाय छे, सलिल विहीन जेवी, सरितानी गोभा अने, भर्तार विहीन जेवी, भामिनी भळाय छे; वदे रायचद वीर, सद्धर्मने धार्या विना, मानवी महान तेम, कुकर्मी कळाय छे ३ चतुरो चोपेथी चाही चिंतामणि चित्त गणे, पंडितो प्रमाणे छे पारसमणि : प्रेमथी; कविओ कल्याणकारी कल्पतरु कथे जेने, सुधानो सागर कथे, साधु शुभ क्षेमयी, मात्मना उद्धारने उमंगथी अनुसरो जो, निर्मळ थवाने काजे, नमो नीति नेमथी; वदे रायचन्द वीर, एवं धर्मरूप जाणी, "धर्मवृत्ति ध्यान घरो, विलखो न वे'मथी." धर्म विना प्रीत नही, धर्म विना रीत नही, धर्म विना हित नही, कथं जन काम