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( ७८ ) खाक ? कुच्छ इस बातमें सत्यताभी होती जो बनाते । ख्वाब के पदार्थोंसेभी कोई संतोपित हुआ है जो होवें। अफसोस है ऐसे तत्त्वों-पर। या इनके वानी मुवानीपर जोऐसी ऐसी बातोंके पेश करते हुए जराभी लज्जित नहीं हुआ । इंद्रियको तो अब वाजुपर रखदेवें मगर बडेबडे पहाड-शहेर-नगर-दीप-समुद्रवेट वगैरा सब चीजें अभिमानसेही पैदा हुई है ऐसा सांख्य मानते हैं। क्योंकि पृथ्वी-पाणी-आग-हवा-और आकाश इन पांचके होनेसे दुनिया है अगर येह पांच न होवे तो दुनियाही नहीं होसक्ती । देखिये, अव यह पांचहि भूत अहंकारसे पैदा होनेवाली पांच तन्मात्रासे पैदा हुए हैं।
इसलिये मेरा यह कथनकि मचकुरा तमाम चीजें अहंकारसे पैदा हुइ है असत्य नहीं है किन्तु सत्य है । देखिये सांख्योंका यह मानना कितना भलभरा है ? मगर स्वामी दयानंदजी ऐसी मोटी बुद्धिवाले आदमीथे कि जैन मतमें तो बडी वडी वारीकी छांटने लग गयेथे । लेकिन आपने सत्यार्थ प्रकाशमें सांख्य मतकी ऐसी वातोंकोभी स्वीकृत रखी है और अपने शिष्योंको ज्ञान कराने के लिये इनबातोंका उल्लेख कर गये हैं। शायद स्वामीजीका यह खयाल होगाकि समाजी अगर समुद्रमें डूवता होगा उस वक्त अपने दिलमें अभिमान लाकर पेट बना लेगा कि झट बच जायमा । प्रिय सज्जनो! इस वक्त मेरी ले. खनी द्वेषसे चल रही है ऐसा नहीं समझना । किन्तु दया भाव