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(५९) मोहकी प्रवृत्ति मन, वचन, कायाके व्यापारसे कोई अलग नहीं पाई जाती । अतः इन तीनोंका मत्तिमें समावेश करनाही ठीक रहेगा, और दुस तथा शहादिक विषयोंका (वारह भेदमें अर्थ शद्रका अर्ध विषय है ।) फलमेंही समावेश करना ठीक रहेगा ! " सुख दु खात्मा मुख्य फल तत् सारन तुगौणमिति जयन्त वचनात् " प्रेत्यभार (परलोक) तथा अपवर्ग (मोक्ष) इन दोनों कामी आत्मही समावेश करना ठीक है। क्योंकि आत्मामा परिणामान्तर हानेकाही नाग परलोक या मोक्ष ह । इसलिये इन दो पदाधीका आत्मासे पृथक् भाव करना ठीक नहीं है । ममेयके बारह भेद माननाभी फेवल अमानता है । अत " द्रव्यपर्यायात्मक वस्तुममेयम्" यही लक्षण ठीक है। क्योंकि ये लक्षग सर्व सग्राहक है। इसलिये इम्म विस्तारसी जरूरत रहती नहीं है, और न इस्का कोई खडन कर सक्ता है। बाद तीसरा पदार्थ इन्होंने सशयको माना है। इसको कौन सच कह सकता है ? यहतो एक तत्वा भासहै।
सशय नाग भ्रान्ति झानका है । इसलिये भ्रान्ति ज्ञानको तत्त्व समझने वागेकोही हग भ्रान्त समझते है । बस, एव याकीके पदार्थोंकोभी इनकी तरह विद्वान् पुम्पोने तत्वाभास समझ लेने अगर हम यहापर सोलह पदार्थोराही वर्णन करना धारे तो एक वडा भारी ग्रन्थ बनानेकी जरूरत है। इसलिये