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(५८) प्रत्यक्ष प्रमाणसे हम देखते हैं कि यह घट है व यह पट (वन) है, अथवा मठ ( मकानकी जानी ) है नगैरा ।
परोक्षसे जैसे शास्त्र प्रमाणसे स्वर्ग नरकादि और धूभाके देखनेसे आगका ज्ञान करना इत्यादिक । स्वर्ग, नरक, घट, पट, आग वगैरा जिनने पदार्थाको हम जान द्वारा देखते हैं, इनको प्रमेय कहते हैं और जिस प्रत्यक्ष व परोन ज्ञान द्वारा ये देखे जाते हैं, उस ज्ञानको प्रमाण कहते हैं। और इनको जानने वाला जो है, उस्को नयाता कहते हैं । अब सोचनेका मौका है कि इन पदाथों को जानने वाला आल्या लाभात् प्रमाता है । उस्को प्रमेय कहना, किलनी वेलमाली बात है ? देखिये, आपके देखते २ आठ पदार्थको साथ लेकर आत्मा प्रमेयसे बाहर होगया । वतलाइये, अब नैयायिक माने हुए प्रमेयके बारह भेद कहां उड गये ? प्रियमित्रो ! गभराइये नहीं अभी बहोत बाकी है। लीजिये, अब वाकीका जबाव । इसके बाद इंद्रिय बुद्धि और मन ये तीन करण है। इस लिये प्रमेय नहीं बन सके। किन्तु वंचित् नमाणके अंग मानना चाहे तो
मान सकते हैं। बाद रागद्वेष और मोह इनको नैयायिक लोग ___ दोप कहते हैं । इस लिय इन तीनोंको प्रवृत्ति में शामिल कर
नाही योग्य है । क्यों कि शुभाशुभ फलवाला मन, वचन, कायाके व्यापारकोही आप प्रवृति कहते हैं । राग द्वेष और