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________________ (४१) तरफ तवजह रजु करनी चाहिये । आत्म कल्याणका मुग्य कायदा सची शुद्ध श्रद्धा है । जब तक शुद्ध धर्मकी प्राप्ति नहो चाहे गिरि कदराम बैठकर तपश्चर्याद्वारा शरीरको सुकादिया क्यों न जाने ? आम कल्याण हरगिज न होगा। इस लिये सच्चे धर्मकी प्राप्तिके लिये कोशीश करना जरूरी बात है । और दुनिया अनेक मतमतान्तर खडे हुए है, कौन जाने, कौन सच्चा और कौन झठा है । इस बात के निर्णयार्थ कुछ एक शाखाका खडन पर्षक जैनमतका महन कर दिखलाताहू । जाप व्यान लगाकर पढे और लाभ उठाव । प्रिय सज्जनो! प्रथम चौद्ध मतपर विचार करते हैं । तो इनका मतव्यमी विलकुल भासा मालूम होता है। क्योंकि प्रश्म ये लोग तमाम पदार्थोंको क्षण विनश्वर मानते हैं, सो पहीद क्यास है। कोई पदार्थ हम ऐसा नहीं देखते है कि वगेर निमित्त के हमारे देखते देखते निर्मल (जडमूल ) सेनाश हो जाने, और हम पता न लगे । देग्निये, जैसे निर्मल (जडमूल) से घटका नाश होता है तो " घटोवस्त." अर्थात् घडा फूट गया, ऐसा ज्ञान हम अश्यमेव होता है । इसीतरह अगर बौद्धोंका क्षण विनश्वर (क्षणक्षणम पदार्थका नाश होता है ) मत सत्य होता तो प्रत्येक क्षणमें हम मतीति होती कि ठीक है । क्षणमें घटका नाश होता है, और उस्की जगह ओर घट पैदा होना है।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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