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आस्तिक-सिवाय तुम्हारे मतके आत्माके अस्तित्व में कोइ मत विरुद्ध नहीं । याने हरएक मतके आगम आत्माको स्वीकारते हैं । अगर कहोगे हमारे मतमें आत्माका अस्तित्व नहीं माना है, इस लिये आत्मा नहीं है । तो यहभी ठीक नहीं। चयोंकि आपका मत अतीव अरात्य होनेके सबबसे हमारी सत्य युक्तिद्वारा खंडित होगयाहै । इस लिये अप्रमाणिक मतके शरणसे आप छूट नहीं सक्ते ? और परलोककी सिद्धिका पुख्ता प्रमाण जगत्की विचित्रताही है । एक राजा, एक रंक, एक भोगी, एक शोकी, एक निरोगी, एक रोगी, बगेरः बातें पूर्वजन्मोपार्जित पुण्य पापके वगेर, नहीं बन सकती है; और एक यहभी अनुमान है कि जब कोई वालक पैदा होताहै तो उसी वक्त अपनी माताके स्तनको मुंहमें लेकर स्तन पान करता है। (दूध पीता है) यहांपर उसी वक्तके जन्मे हुए चालकका दूध पान करना पूर्वके अभ्याससे समझा जायगा । क्योंकि अगर उसमें खाने पीनेका अभ्यास पूर्व जन्ममें न होता
नो अभ्यासके वगेर खाने पीनेका काम कभी न करता । - इससे भी परलोककी सिद्धि होजाती है। यहांपर अनेक प्रमाण
आयत होसक्ते हैं। मगर निबंध वढ जानेके भयसे हम इतनेसेही संतोष करते हैं । क्योंकि अकलमंदोंके लिये इशाराही काफीहै ।
प्रिय मित्रो ! आत्माकी सिद्धि होनेसेही हम कृत कार्य होगये । ऐसा मत समझें, किन्तु अब आत्म कल्याणकी