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(२३२ ) अधर्मा प्रणिनां वधः । तस्मात् धर्माधिना वत्स कर्त्तव्या प्राणी नां दया ।" इस जगह थोड़ेसे जैनशास्त्रोके तथा जैनविब्रान पंडितांके वाक्योंके दृष्टान्तके स्थानमें अन्य मतावलम्बी विद्वानोंकी ( अहिंसा परमो धर्मः पर ) सम्मनि बतलानाही उचित होगी.
श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरंसका तीसरा अधिवेशन जब वडोदेमें हुआ उस वक्त ३० नवा सन् १९०४ १० को जगद्विख्यात भारतभूषण लोकमान्य पंडित बालगंगाधर तिलकने जो नरहटी भापामें व्याख्यान दियाधा उत्तमा तारांग बतल ते हैं:
" जैन धर्मको प्राचीनता" जैन धर्म प्राचीन होनेका दावा करता है-जैन धर्म विशेष कर ब्राह्मण धर्मके साथ अत्यंत निकट संबंध रखता है, दोनो धौ प्राचीन और परस्पर संबंध रखने वाले हैं.जैन हिन्दूदी है. कितनेक लोगोने भेद बतलाया है पर वह यथार्थ नहिहै, जैन धर्म और ब्राह्मणधर्म हिन्दु धर्मही है, ग्रंथों तथा सामाजिक व्याख्यानोलें जाना जाता है कि जैनधर्म अनादि है-यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है, और इस विषय में ऐतिहासिक अनेक प्रमाण हैं और निदान इरवी सनसे ५२६ चर्प पहलेका तो जैनधर्य सिद्ध है ही, जैन धर्मके महावीर