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( २३१) दमन, कपायका जीतना इत्यादि इनके वगैर. मोक्ष प्राप्त नहि हो सकता, अब इसका कुछ विवर्ण आपको भेट किया जाता है-धर्म उसहीको कहते है जिसमें दयाहो. यों तो सर्व धर्मावलम्मी अपने २ धर्मको दयामय बताते है जैसे इगलेंडमें प्राणी रक्षक मडली है (यहभी अपनेको दयामय बताती है) उसके दयाके दृश्यको देखिये, यह मडली प्रत्येक माणीयोंकी रक्षा का प्रयत्न करती है और जर देखती है कि इस माणीका बहुत उपाय करने परभी वचनेकी आशा नही है तो उसको गोली मारदी जाती है ताके उसके जीवको कष्ट नहो-भारत पीय देवी देवता तथा क्रिया अनुष्ठान यज्ञादिके बहानसे पर चमे धर्म मानते है-मोड हिसक जीरके मारनेमें धर्म मानते है इत्यादि कई प्रकारके लोक अन्यान्य स्वार्थ सायनमेंही धर्म मानते है, परन्तु सच्चा धर्म तो नही कहा जाता है जिसमें यथा नाम तथा गुण है.अनी उसीही पवित्र व सच्चे धर्म के अनुया यी है-और यह 'अहिंसा परमो धर्म । इस सन्दसें जगतमें विग्यात हो रहा है-इएक अन्यान्य विधर्मी इसरा ( अहिंसा परमो धर्म का) मन गढन्त अर्थ लगाकर भोले जीगेको भ्रममें डाल देते है परन्तु उसका सचा अर्थ तो यही है कि 'हिसा नहिं करना यही परम धर्म है' यानि दया वर्गरः धर्मही नहि ( या यों कहो कि दयामही धर्म है।) जैनधर्मम तो ठीक, अन्य धर्मीयोनेभी कहा है कि ' अहिसा लक्षणोपर्म: