________________
( २२७ ) तत्वोंकि कुछ महिमा इस अवसर पर कही जाती है.
देव-प्रथम तो यह बताना परमावश्यक है कि जेनी कैसे देव मानते हैं, जैनी उन्हीं देवको मानते हैं जिन्होंने प्रक्तिका __ अखड मुख राग द्वेपादिसे रहित होफर प्राप्त पर, तीर्थकर
पदको सुशोभित किया है उनके उत्तम गुणकी विशेष महिमा पीछेके (व्याख्याको) खडमें प्रकाशित की जायगी. ___ गुर-सद्गुरु वही होते है जो जैनशास्त्रों के पवित्र सि
द्धा तानुसार शुद्धसयम पचमहानत पालकर मुक्ति प्राप्त करनेका साधन करते हैं यह अवसर समझकर पहेले "जैनी
योंके महामन "कि सक्षेप समालोचना की जाती है-महा __ मन जिसको नकार मनभी कहते हैं उसको सस्कृत भापामें
इस तरहपर कहते है " नम अई सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्य " यह पच परमेष्टी मोक्ष प्राप्त करनेके लिये मुख्या चार भूत है, इसका भावार्य यह है कि 'अईन् । जो तीर्थफर होने वाले है 'सिद्ध ' जो मोक्ष प्राप्न कर चुके ह 'आ. चार्य'' उपा याय ' 'साधु' यह वर्तमानमें भव्य जीवों को भोपिस पार उतारनेके लिये स्टीमरकै केप्टन समान है. इस आय देशम विचर रहे हैं, जनी रोग इन्हीको सद्गुर कहने है और उनम गावानुसार जर गुण देखे जाने है तो मर चिन गुणानुसार पवि देने हैं अर्थात् जिनमें छनीप्स