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( २२६ ) मह आदिनाथ भगवान कहे जासक्ते हैं, प्राचीन समयमें शास्त्र पुस्तकारूद करनेकी आवश्यकता नहींथी क्यों कि उनकी विचारशक्ति (याददाश्त ) बहुत बड़ीथी.
पूवाचार्योंने विचार किया कि भविष्य जीवोंकी वैसी वि. चारशक्ति नहीं होगी अतएव प्रथम ताड़पत्र व काग़जोपर शास्त्रोंका लिखा जाना आरंभ हुवा और उस समयके शास्त्र अभीतक बड़े २ भंडारोंमें उपस्थित हैं. ___ इन शास्त्रोंका पवित्र उद्देश भव्यजीव मुक्ति-मार्गकों सरलतापूर्वक प्राप्त कर सके यही है, अब यह बताया जाता है कि कर्म रूपी शत्रुओंको किन २ कर्त्तव्योसे जीतकर मुक्ति मार्ग प्राप्त हो सकता है.
जैनशास्त्रोंके पवित्र सिद्धान्तकी समालोचना एक क्या अनेक जिव्हासेंभी सर्वज्ञ कथित होनेसें नहिं होसक्ती, और उनपर अपनी सम्मति प्रकाशकरनी एवम् टीका टिप्पणी करनी मानो सूर्यको दीपक बताना है, समकालिन तो क्या बड़े २ आचार्यभी पुर्ण रीतिसें इन पवित्र शासोंकि महिया वर्णन नहिं कर सक्ते, तो फिर हमारी स्वल्य बुद्धि तो इस महिमाको बतानेके लिये मानो उदधिके सामने विन्दु है, पवित्र जैनशाखोमे तीन मुख्य तत्व हैं जिन्होंके आलम्बनसे अटल मुक्तिका सुख प्राप्त हो सकता है, देव, गुरु, धर्म इन तीन