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( १७५) और कितनेक गावके अन्दर सन होते है वहातक रोते है आर दरवज्जे वहार गये कि सब चुप रहनाते है और मरजीमें आवे वैसी आडी टेढी बातें करते २ स्मशानमें पहोंचते है उनको शरम नहीं आती कि मरण जैसे गम्भीर अवसरपर आडी टेली वातें करते है।
स्मशान स्मशानम पहोंचे कि शोक रज तो सर दूर होजाता है ऐसा माम देता है-पाद वहा कोइ कुच्छ बात करता है कोई कुच्छ मात करता है कोई इसी और गप्पे मारते है तो कोई साने बगैर की बात करते है तो कोद मौसरकी-इस मुतारिक स्मशानमे जुटी • टोलीय होकर अलग २ बैठते हे कोई अनजान मनुष्य साया तो वो ऐसाही धारता है कि यह लोग गम्मत करनेको यहा आये है अफसोस अफसोस है कि ये कैसी विधारने योग्य रीति है
मृत्युमें गप्पे क्या मारना चाहिये ? नहीं यह वक्त गम्भीरतामा है मगर उस वक्त हसी माखरी करते हैं ऐसे मौकेपर होतही गम्भीरता रखना चाहिये और मरेहुयेका व अपनी जातिका मानमग नहीं करना चाहिये
मुर्दको जलाये याद सब अलग २ निखर जाते है और कई कहां आगे जाकर बैठता है तो कोई और आगेवान सर