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आश्रय लिया है । देखिये ! कैसी निष्पक्षता जाहिर कीगई. है। अब जैनकी उत्तमता दिखलानेके लिये कई एक प्राचीन शाखाओंका खंडनकर अतीव प्राचीन जैन मतका मंडन करनेको कलम उठाताहूं; मगर यहांपर प्रथम नास्तिकका खंडन करना योग्य समझताहूं, क्योंकि इनके सिवाय प्रत्येक मतवाले आत्माको मानते हैं, मगर नास्तिक सर्वथा इन बातोंसे विरुद्ध रहता है; और हमारे यहां जैन मतमें आत्मिक शक्तिको मुख्य मानकर देश विरति व सर्व विरति रूप साधन द्वारा प्रकट करना लिखा है । जब जीव घाती कर्मसे अलाहिदा होता है तव अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र और अनंत वीर्य मय अपने स्वाभाविक स्वरुपको प्राप्तकर जीवन मुक्त दशाको माप्त होताहै, शेष आयुष्यको पूर्णकर अघाती कर्मका नाश करतेही साथ २ विदेह मुक्त होजाता है । वगैरः वगैरः बयान हमारे जैन शास्त्रोमें है । इस लिये हमें आत्म सिद्धिपर ज्यादः जोर लगानेकी जरुरत है, क्योंकि " विनामूलं कुतः शाखा" अर्थात् वगेर मूलके शाखा नहीं होसकती है । इसलिये जबतक मात्माकी सिद्धि न होगी वहांतक हमारे यहां रुहानी तालीमपर
आत्मोन्नतिपर ) गणधर महाराजके रचेहुए शास्त्र सर्वधा निष्फल होजायगे । अतः नास्तिकोंके मतका खंडन किया जानाही चाहिये।