________________
( १५३) इस घोर सत्यका तिरस्कार करते है___पृतभोजा- [ तुक्ते ] गावद इतनी सामान्य हकीकत कहनमें आइहे अब उसपर अधिक विवेचन किया जाता है___ मृत्युफे वाद-जीगनबार [नातीभोजन करना या उसमें गानेको जाना यह मुश जनाका योग्य है ! ____ यह माल सिर्फ जैन कामके लियेही है, ऐसा नही परन्तु सर्व जनसमूहको लाग होता है।
इस समारका निर्णय करनेमें प्रथम तो लाभालाभका विचार करना चाहिये, ऐसा करनेसे लाभका फोई एकभी अश शात नहीं होता, परन्तु नुकसान अत्यन्त मा ठम होताहै ! इसके बारेम जितना वर्णन किया जाये उतनाही योदा है !
मनुष्य और पशुमें फर्क इतनाही है कि मनुष्यम शानहै पशुमें ज्ञान नहीं, इससे मनुष्य विचार पूर्वक धर्म अर्थ और काम यह निवर्गको साध सक्ताहै और पशुमें मानका अभाव होनेसे उसका इस साधनपर विचारही नही होता. भर यह निसर्ग
धर्म, अर्थ और याम मितने बजे उपयोगी और उसके मायनेगे यह रिवाज [ मृतभोगन] कितना विघ्नभा होता है उसका यत् किंचित् विचार करना अमामगिक असार्थक न होगा।