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अहम् ।
पूज्यवर्य गणिजी श्री केवलचंद्रजी महाराजका
संक्षिप्त,-जीवन-चरित।
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उदय-च्छन्द. नहिं जपे परदोप, अल्प परगुन बहु मानहीं, हृदय धरही संतोप, दीन लखी करुना ठानही, उचित रीति आदरहीं, विमल नय नीति न छंडही, निज जसलहन परहरहीं, रामाचि विपय विहंडही, मंडही न कोप दुर्वचन मुनी, सहज मधुर ध्वनी उच्चरही, कहिं कवरपाल जगजाल यश, ए चरित्र सज्जन करही. ?
परोपकारी, उदार चरित महान् पुरुषोंकी जीवनी पढ़नेस मनुप्यको जैसा मनुष्य कर्तव्यका ज्ञान प्राप्त होता है, वैसा जान अन्यान्य किसीभी साधनद्वारा नहीं हो सकता । जैसा २ मनुष्य उत्तम पुरुषोंके चरित पढ़ते चले जाता है तैसार उसके मनामे उच्च श्रेणीके विचार बंधते चले जाते हैं । व्यसनी एवं अश्रेष्ट पुरुपभी यदि महात्माओंकी दिनचर्या एवं जीवनीका अवलोकन करनेका सतत प्रयत्न करता रहे तो वह अवश्यमेव श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है। और अन्तमें मुज्ञ जनभी र