________________
( ११२ ) वाले तथा लोचादि काय क्लेश करने वाले महात्माओंमें पाया जाता है । और दुसरा भेद हजारों कप्टोको वगैर धर्म बुद्धिके परतंत्र भावसे वरदास करनेवाले दीगर लोगामें पाया जाता. है। इति उपादेय निर्जरा तत्वे ।। इसके बाद नवमा तल मोक्ष
माना जाता है. "आत्यन्तिको वियोगस्तु दे हा दे मोक्ष उच्यते __ यानि पांच शरीर तमाम इंद्रिये आयुष्यादि दश बाह्य प्राण पुण्य
पाप वर्ण गन्ध रस स्पर्श पुनर्जन्मका ग्रहण करना तीनवेद कपायादि संग अज्ञान और असिद्धत्व इनसे आत्यन्तिक वियोग (फिर इन चीजों के साथ कभीभी संयोगका न होना इस आत्यन्तिक वियोग कहते है) का होना इरका नाम मोक्ष है.'
पाठकगण-अजी! साहब ? शरीरके साथ तो आत्यन्तिक वियोग होना मान लि जायगा क्योंकि शरीरकी आदिहै मगर अनादि रागद्वेष रुप वासनाका नाश कैसे सकेगा ? चुके अनादि चीजका नाश कभी नहीं होसक्ता । अनुमान यह है . यदनादिमत्, नतद्विनाशमाविशति, यथाकाशं । अनादिमन्तश्वरागादय इति ॥ __ मतलव-जो चीज अनादिसे चली आतीहै वो नाश भावको प्राप्त नहीं होती । जैसे आकाश अनादिहै तो नष्ट भी नहीं होता । इसी तरह रागद्वेषका नाश भी नहीं होसकेग क्यों कि येहभी अनादिहै.