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________________ झरिया में दीक्षोत्सव विदाई समारोह और विहार - वगाल की राजधानी कलकत्ता का ऐतिहासिक वर्षावास सम्पन्न होने के पश्चात् सवं मुनि मण्डल का हजारो नर-नारी नागरिको द्वारा विदाई समारोह सम्पन्न हुआ। उस समय का दृश्य दर्शनीय व अनोखा था । अधिकाश नर-नारो वियोग-वेदना से व्याकुल एव उदासीनता की आधी से पीडित-दुखित जान पड रहे थे । "गुरुदेव । पुन दर्णन की कृपा शीघ्र करें, गहरे गतं मे गिरे हुए इस क्षेत्र को भूलें नही, हम तो केवल धनार्थी है, न कि धर्मार्थी । अतएव हमारी विनती सदैव आप के झोली-पात्र मे ही नही, अपितु मन-मजूपा में रहे ।" इस प्रकार कलकत्ता निवासी जनता की व्यथिन वाणी बार-बार अनुनय अनुरोध कर रही थी। सरस्वती का सदन शान्ति-निकेतन - शस्य-श्यामला वगाल धरातल को पावन करते हुए तथा इर्दगिर्द निवासियो को जैन श्रमणजीवन का परिचय, उपदेश वाणी विज्ञापन पत्रो द्वारा करते हुए विश्व विख्यात शान्ति निकेतन (वोलपुर) पधारे । यह नगर सचमुच ही शान्ति एव सरस्वती का जीता जागता सदन माना गया है । इस विराट सस्था के सचालक कुलपति कर्मठ कार्यकर्ता आचार्य क्षिति मोहन सेन थे। जहा भारतीयो के अलावा इरानी, चीनी, नेपाली वर्मी एव लका निवासी आदि नाना देशो के सैकडो विद्यार्थी अपनीअपनी रुचि के अनुसार दर्शन-भूगोल, इतिहास, विज्ञान आदि विपयो का अध्ययनाध्यापन किया करते हैं । सचमुच ही यह केन्द्र भारतीयो के लिए गौरव का प्रतीक है और भारतीय संस्कृति के लिए भी । आचार्य क्षितिमोहनसेन स्वय अनेक होनहार छात्रो को सग लेकर दर्शनार्थ आए । जैन-दर्शन, प्राचीन जैन इतिहास एव जैन साहित्य श्रमण-जीवन के विषय मे काफी तात्विक चर्चाएं हुई । उपस्थित जिज्ञासु विदेशी विद्यार्थियो ने भी श्रद्धा भक्ति एव जिज्ञासा पूर्वक दुभाषियो के माध्यम से 'मुहपत्ति' 'रजोहरण' 'केश लोचन' एव पादयात्रादि विषयक प्रश्नो का सम्यक् समाधान प्राप्त किया। इस प्रकार काफी प्रभावित व प्रसन्न चित्त होकर लौटे और दूसरे दिन "जैन दर्शन" पर उसी सस्था के विशाल हाल मे प्रवचन भी करवाया व सस्था द्वारा मुनिवरो को अभिनन्दन पत्र भेंट किया । जो आगे दिया गया है और सस्थाओ के सर्व विभागो का अवलोकन भी करवाया गया। मनियो का मागलिक मिलनयहा से श्रमण गण सैथिया आए। जहा वयोवृद्ध तपस्वी महा भाग्यवान श्री जगजीवन जी म०, प्रखरवक्ता श्री जयन्ति लालजी म० एव श्री गिरीश मुनि जी म. सानन्द विराज रहे थे । उदार मन मुनियो का पारस्परिक व्यवहार अत्यधिक प्रेम भरा एव सौहार्द स्नेह पूर्ण था। आप मुनिवरो के सान्निध्य मे यहा एक सर्व धर्म सम्मेलन भी हुआ, जो सैथिया नागरिको के इतिहास मे नवीन ही था। यहाँ आशातीत धर्म-प्रभावना एव धर्मोन्नति हुई। यद्यपि घरो की संख्या से यह क्षेत्र लघु था तथापि
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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