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________________ प्रथम खण्ड कलकत्त मे नव जागरण | ५७ कल्याण पर भाषण हुए। उपस्थिति सन्तोपजनक थी। इसी अवसर पर भारत सरकार के उप-अर्थ मन्त्री श्री मणिभाई चतुरभाई की धर्म पत्नी श्री सरस्वती देवी एव उनके सुपुत्र श्री शरत्कुमार जैन भी उपस्थित थे। जैन-सस्कृति-सम्मेलन१० जनवरी ५४ को, २७ पोलोक स्ट्रीट जैन स्थानक मे पण्डित मुनि श्री प्रतापमल जी महाराज व पण्डित मुनि श्री हीरालाल जी महाराज के सानिध्य में एक जैन सस्कृति सम्मेलन मनाने का विशाल आयोजन किया गया। इसका सभापतित्व बगाल के माननीय राज्यपाल श्री एच० सी० मुखर्जी कर रहे थे । सम्मेलन मे अनेक इतिहासज्ञो एव पुरातत्त्वविदो ने जैनधर्म एव सस्कृति पर प्रभाव शाली भापण दिये जिससे जैन धर्म के अधकारमय इतिहास और प्राचीनता पर अच्छा प्रकाश पडा। सम्मेलन में उपस्थित जनता के अतिरिक्त नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री मातृकाप्रसाद कोइराला, डा० कालिदास नाग तथा वौद्ध भिक्षु श्री जगदीश काश्यप का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रकार के सम्मेलनो से जैन-धर्म और सस्कृति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है तथा अन्य विद्वानो के इस विपय मे क्या मत हैं, उनका भी पता लगता है । जैन-धर्म व सस्कृति के उद्धार-कायं मे इस प्रकार के सम्मेलनो का बडा भारी हाथ है। कान्फ्रेन्स की शाखा का उद्घाटन२५ जनवरी को मुनिवरो के तत्त्वावधान मे सेठ अचलसिंह एम पी आगरा द्वारा श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स की शाखा का उद्घाटन किया गया । कलकत्ता जैसे विशाल नगर मे कान्झन्स के कार्यालय का अभाव बहुत ही खटकता था अत इसकी शाखा का उद्घाटन कर एक बडी भारी कमी की पूर्ति की गई। वगाल गर्वनर और मुनिगणवडे-बडे उद्योगपति आप के सम्पर्क मे आये । वगाल के गर्वनर एस० सी० मुखर्जी भी अवसर पाकर आप के दर्शनार्य सेवा मे उपस्थित हुए और जन श्रमण के आचार विचार एव तपोमय सयमी जीवन को देय सुनकर काफी प्रभावित और मन्तुष्ट भी हुए। यहा तक कि---जहा कही अन्यत्र ये सभा सोसाइटी मे जाते थे वहा भारी जैनेनर मेदनी के बीच जैन श्रमण के महान् जीवन की तारीफ करते हुए कहते थे कि-"जिनके भक्तगण एडी से चोटी तक सोना पहनते हैं, उच्चातिउच्च महलो मे वास करते हैं और खान-पान परिधान भी वैसा ही रखते हैं, किन्तु उनके गुरुओ का हाल सुनिए, वे नगे सिर एव नगे पर पाद यात्रा करते है। न रुपये पैसो की भेंट लेते हैं और न किसी के सामने दीनतापूर्वक हाथ ही पसारते हैं । अहा ! कितना महान् त्याग । ऐसे सच्चे सन्त महत ही विश्व का कल्याण कर सकते हैं। यदि मुझे पुनर्जन्म मिले तो मैं भगवान से ही प्रार्थना करता हू कि-ऐसे पवित्र जन परिवार मे मुझे दे । और ऐसे ही त्यागी वैरागी जैन साधुओ का सुयोग भी मिलें, ताकि मैं अपने भावी जीवन को सर्वोत्तम वना सकूँ।" __ मैं भी (रमेश आ टपकाविशेप सकल सघ के खुशी का कारण मैं भी एक था चातुर्मास उठते-उठते मैं (रमेश) भी वैरागी का बाना पहनकर कलकत्ता आ टपका। यद्यपि मेरा जन्म एक भरे-पूरे सम्पन्न ओसवाल जैन
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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