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________________ प्रथम खण्ड कलकत्ते मे नव जागरण | ५५ स्नेह-सम्मेलनजैन सभा द्वारा आयोजित पयुर्पण-पर्वव्याख्यानमाला के अन्तिम दिन मुनिवरो के दिगम्बर जंन भवन मे तप व क्षमा पर भाषण हुए, तत्पश्चात श्री सोहनलाल जी दुग्गड एव धर्मचन्द जी सरावगी के भी प्रभावशाली भापण हुए। इमी दिन कलकत्त के इतिहास मे एक अभूत पूर्व कार्य हुआ। वह था एक प्रीतिभोज । इस प्रीतिभोज की विशेषता थी कि सभी स्थानकवासी सज्जन प्रान्तीयता एव जातियता का भेदभाव छोडकर इस प्रीतिभोज मे सम्मिलित हुए। प्राय धर्म ग्रन्थो मे सहमियो का प्रीतिभोज प्रेम का कारण बताया गया है। आज इस सत्य का भी अनुभव हुआ। विभिन्न प्रान्तो के निवासियो ने एक साथ भोजन कर एव एक स्थान पर मिलकर बडे ही आनन्द का अनुभव किया। वह वेला भी वडो सुहावनी थी। क्षमतक्षमापना-सम्मेलनसमस्त जैन समाजो की ओर से ता० २७-६-५३ को एक सामूहिक क्षमतक्षमापना-दिवस मनाने का आयोजन किया गया। इसमे सभी दिगम्वर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरह पथी, मूर्तिपूजक आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर मुनियो के क्षमा के महत्त्व पर भापण हुए। इस आयोजन मे मनिवर वल्लभ-विजय जी न्यायविजय जी, साध्वी श्री कचनश्री जी, शीलवती जी, मृगावती जी आदि भी उपस्थित थी, उन्होने भी सर्गाठत रहने की अपील की। निर्वाणोत्सवता० ७-११-५३-आज भगवान् महावीर का निर्वाण दिवस था, इस उपलक्ष्य मे प्रात शास्त्र विशारद प० मुनिवर हीरालाल जी महाराज ने जन सभा में भगवान महावीर की अन्तिम-वाणी उत्तराध्ययन सूत्र का स्वाध्याय किया। इसी अवसर पर सघ मत्री श्री केशवलाल भाई ने प्रमुख साहब का मन्देश पढकर सुनाया - "वीर सम्वत २४८० नु मंगल प्रभात" पूज्य महाराज जी श्री प्रतापमल जी महाराज, महाराज श्री हीरालाल जी महाराज तथा अन्य मुनि महाराजो उपस्थित वन्धुओ तथा वहिनो । आजे आपणा परम तीर्थकर श्री श्री महावीर प्रभुना निर्वाण वर्ष सम्वत २४८० ना मगल प्रभाते आपणे पूज्य महाराज श्री पासे श्री श्री महामगलकारी मागलिक श्रवण तथा नूतन वर्षाभिन्दन माटे माल्या छोये । आपना श्री सघना महाभाग्योदये ज्यारथी आपणु विशाल-उपाश्रय नुं निर्माण थ! छे त्यार थी आफ्ना श्री मघ ने विद्वान मुनि महाराजो ना चातुर्मामनो लाम मल्यो छ। गत वर्ष तपस्वी श्री जगजीवन जी महाराज तथा वालब्रह्मचारी श्री जयन्ति लाल जी महाराज ना चातुर्मास दरम्यान घणो आनन्द मगल वर्षायो अने चालु वर्ष पण बहु सरल स्वभावी पूज्य महाराज, श्री प्रतापमल जी महागज, श्री हीरालाल जी महाराज आदि ठा० ६ मा चातुर्मास मा आपणा स्वधर्मी राजस्थानी वन्धुओ तथा पजावी वन्धुओ नो आपण ने सारो सहकार मल्यो छ । परम पिता श्री तीर्थकर देवनी आपना श्री सघनी उपर सतत आर्शीवाद रहो तेवी आपणी नम्र प्रार्थना छ।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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