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________________ कानपुर की ओर कदम इस प्रकार दिल्ली के पवित्र प्रागण में अनेकानेक प्रेरणादायी धार्मिक उत्सव सम्पन्न हुए और हो ही रहे थे कि-श्रद्धा-भक्ति का उपहार लेकर कानपुर सघ का एक प्रतिनिधि मडल गुरु भगवत की सेवा मे आ पहुचा । परोपकारी गुरुवर्य ने भी समयानुसार क्षेत्र स्पर्ग ने की मजूरी फरमाई और तत्काल उत्तर-प्रदेश की ओर प्रस्थान भी कर दिया। ___ उत्तर प्रदेश अनेक महामनस्वी तीर्थकरो की एव मुनिपु गवो की जन्म एव पावन विहार स्थली रही है । एतदर्थ उस भूमि का कण-कण पवित्र हो, उसमे आश्चर्य ही क्या उम प्रदेश में काफी लम्बे-चौडे समतल मैदान पाये जाते हैं। भारत-प्रसिद्ध गगा यमुना नदियां उस प्रदेश के ठीक बीचो-बीच उछलती-क्दती हुई बहती है। वस्तुत सरिताओ के इत और उत कुलो पर बडे-बडे नगर शहर वसे हुए हैं । जल को अधिकता के कारण जहां-तहां देश सर-सब्ज एव हरा-भरा है । आगतुक यानियो की दृष्टि को सहज ही आकृप्ट-आनन्दित करता है। जन-जीवन भी भारतीय-सस्कृति एव धामिक सस्कारो के अनुरूप दृष्टिगोचर होता है। 'अतिथि सत्कार' उस देशीय नर-नारी का मुख्य एव आदरणीय गुण है । विद्या-विनय-विवेक त्रिवेणी का सुन्दरतम सगम उत्तर प्रदेशीय जनता को सहज मे ही उपलब्ध हुआ है। अतएव जनता अधिकरुपेण सुशिक्षित-सुविचारी एव मधुरभापी है। उपर्युक्त गुणो का अनुभव करते हुए गुरुप्रवर, मुनि मडली सहित आगरा पधारे । यहाँ पर पूज्य श्री पृथ्वीचन्द्र जी म० एव ५० रत्न श्री प्रेमचन्द जी म० आदि मुनिवरो के दर्शन हुए । पारस्परिक सौहार्द स्नेह्ता पूर्वक विचारो का आदान-प्रदान हुआ। इतने में पजाव की ओर पधारे हुए प्र० श्री हीरालाल जी म० आदि सन्तो का शुभागमन भी यही हो गया। सर्व मुनि मण्डल का वह मधुर मिलन, समाज को सुसगठन की ओर प्रेरित कर रहा था। काफी दिनो तक आगरा विराजें । स्थानीय सघ मे कई शुभ प्रवृत्तिया हुई, तत्पश्चात् आए हुए छहो मुनियो ने कानपुर की ओर कदम बढाए। ___ कानपुर भारत के मुख्य नगरो मे से आठवां नगर और उत्तर प्रदेश का प्रथम वैभव सम्पन्न औद्योगिक नगर माना गया है। जहाँ लाखो जन आवादी की गडगडाहट, वाणिज्य-व्यापार की विस्तृत मडी एव छोटे-मोटे सैकडो कल कारखाने सचारित होकर नगर को घेरे हुए हैं । भारी परिश्रम पूर्वक स्व० श्रद्धेय गुरुदेव श्री चौथमल जा म० ने यहाँ चातुर्माम करके रत्नत्रय के पवित्र पय से इस क्षेत्र का पुन सिंचन किया था। उसी समय स्थानकवासी जैन सघ की जड़ें जमी, संघ मे नई स्फूर्ति अगडाई लेने लगी, नया सगठन हुआ एव अनेक मुमुक्षओ ने शुद्ध मान्यता के मर्म को समझकर समकित-प्रतिज्ञा स्वीकार की थी। इसीलिए स्थानकवासी जैनो के घर घर में श्रद्धेय दिवाकर जी म. के प्रति वहीं श्रद्धा-भक्ति आज भी ज्यों की त्यो विद्यमान है। गुरु प्रवर श्री प्रतापमल जी म० का भी एक चातुर्मास पहिले यहाँ हो चुका था और कई प्रकार की उलझी हुई माधिक समस्याएं भीआप की वलवती प्रेरणा से हो हल हुई थी। अतएव जो
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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