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________________ दिल्ली का दिव्य चातुर्मास "परोपकाराय सता विभूतय' तदनुसार मवत् १६६६ का वर्षावाम सघ के हितायं रतलाम मे ही सम्पन्न हुआ। तत्पश्चात् मन्दमोर निवासी श्रीमान् बमन्तीलाल जी टुगड (तपस्वी श्री वगतिलालजी म०) की भागवती दीक्षा आपके पावन चरणो मे सम्पन्न हुई। फिर क्रमश दिल्ली, साददी-मारवाड, व्यावर, जावरा, शिवपुरी, कानपुर मदनगज, इन्दौर, अमदावाद, पालनपुर, एव बकाणी आदि क्षेत्रो में । चिर स्मरणीय चातुर्मास पूरा करने के पश्चात् मकल सघ दिल्ली के श्रावक समाज के अत्याग्रह पर गुरु प्रवर श्री प्रतापमलजी म० तत्त्व महोदधि प्रवर्तक श्री हीगलालजी म० तरुण तपस्वी मुनि श्री लाभचन्द जी म० तपस्वी श्री दीपचन्द जी म० तपस्वी श्री बमतिलाल जी म० एव नवदीक्षित श्री राजेन्द्र मुनि जी म० आदि मुनिवरो ने महती कृपा कर सवत् २००८ के चातुर्मान की स्वीकृति चान्दनी चौक दिल्ली श्रावक ममाज को प्रदान की । यह चातुर्मास अनेक महत्त्वो को लेकर ही निश्चिन हुआ था। सयोग वशात् उस वर्ष दिगम्वराचार्य स्व० श्री सूर्य सागर जी म० एव श्वेताम्बर तेरापथ के आचार्य तुलमी जी म० का चातुर्मास भी इस वर्ष दिल्ली में ही मजर हआ था। अतएव स्था० मघ ने आप मुनिवरो का यह वर्पावाम दिल्ली करवाना अति महत्त्वपूर्ण समझा। तदनुसार विनती स्वीकृति - की सूचना सकल समाज में फैलते ही जहां-तहाँ हर्प-खुशी का वातावरण छा गया । घर-घर मे अपूर्व चेतना अगडाई लेने लगी । मानो उमगोल्लम की त्रिवेणी-फूट पडी हो । स्थानकवासी-समाज में एक ही चर्चा चल पड़ी थी कि-आचार्य प्रवर श्री खूबचन्द जी म० के विद्वद्वर्य गुरु भ्राता श्री प्रतापमलजी म० एव ५० रत्न श्री हीरालाल जी म० अपनी मशिष्य मडली के माथ पधार रहे हैं। पूज्य प्रवर पहले अनेकों वो तक चान्दनी-चौक के भव्य-रम्य स्थानक मे शारीरिक कारण वशात् विराज चुके थे । वस्तुत उन के त्यागतपोमय जीवन की अखण्ड-अमिट छाप दिल्ली के प्रतिष्ठित श्रावको के मन-स्थली पर ही नहीं, अपितु अमवाल वृद्ध भक्त मण्डल के दिल-दिमागो पर ज्यो की त्यो उन दिनो मे थी और आज भी है । इसलिए सघ मे सन्तोष-शान्ति की मदाकिनी वहना स्वाभाविक ही था। इस प्रकार काफी जन समूह के साथ आप मुनिवृन्दो का नगर प्रवेश सम्पन्न हुआ। चातुर्मास प्रारम्भ के पूर्व ही व्याख्यानो की धूम-सी मच गई। हृदयस्पर्शी उपदेशो के प्रभाव से चारो ओर से जनप्रवाह उमड धुमड कर आने लगा। कुछ दिनो बाद आ० सूर्य सागर जी म० से भेंट हुई। ये मुमुक्षु वे ही थे---जो पहले कोटा के विशाल प्रागण मे श्रद्धेय दिवाकर श्री जी महाराज और आप (आ० सूर्यसागर जी म०) का कई वार प्रेममय साधु मिलन व कई वार व्यारयान भी सय होचके थे। दिल्ली-सघ के इतिहास मे भी शायद यह प्रथम घटना ही थी कि-दिगम्बराचाय ५५ स्थानकवासी साधु इस प्रकार सस्नेह मिल-जुल कर सघ-समाज हिताय सुखाय वातचीत, विचारों का आदान-प्रदान करें व नवीनतम मामूहिक योजनाओ का श्री गणेश भी। वस, दोनो समाजो के वान मंत्री-प्रमोद भावनाओ का मूत्रपात हुआ । एक दूसरे, एक दूसरे के सन्निकट आये एव नाना प्रकार मिथ्या-भ्रातिया भी दूर हुई।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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