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________________ प्रथम खण्ड . गुरु नन्द का साक्षात्कार | २३ महा मनस्वियो का दीर्घ जीवन तथा दीर्घ सपर्क समाज, राष्ट्र परिवार एव सघ के लिए मगल स्वरूप माना गया है । क्योकि समय-समय पर उनके द्वारा विचार-सवल, मार्गदर्शन एव ज्ञान-प्रकाश की प्राप्ति होती रहती है । शारीरिक व्याधि के कारण गुरु भगवत श्री नदलाल जी म० को भी लगभग डेढमास तक देवगढ मे ही विराजना पड़ा। इतने लम्वे काल तक वहां विराजने से वैराग्य भावना आशातीत प्रवल-पुष्ट एव प्रौढ वनी। यहाँ तक कि-वैरागी प्रताप समस्त आरम्भ-परिग्रह से निवृत्ति ग्रहण कर ज्ञान-साधना मे सुष्ठुरीत्या जुट गया । व्याधि का मत होते ही गुरुदेव का रतलाम की ओर प्रस्थान हुआ । तव विरागी प्रताप भी पूरी तैयारी के साथ, गुरुदेव के साथ जाने के लिए तत्पर हुआ । लेकिन'सुकार्येषु बहु विना' शुभकार्य मे अनेक विघ्न-बाधाए आते हैं " | न . odinuunia MISTRammHHARImmilim mahilibrariniti|| N if\ u09191140
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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