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________________ भारतीय इतिहास का लौह-पुरुष : चण्डप्रद्योत -देवेन्द्र मुनि शास्त्री, साहित्यरत्न भगवान् महावीर के समय उज्जनी का राजा चण्डप्रद्योत था। उसका मूल नाम प्रद्योत था परन्तु अत्यन्त ऋ र स्वभाव होने से उसके नाम के आगे चण्ड' यह विशेपण लगा दिया था। उसके पास विराट् मेना थी अत उसका दूसरा नाम महामेन भी या' । कथा सरित्सागर के अनुसार महासेन ने चण्डी की उपासना की थी जिसमे उसको अजेय खड्ग और याम प्राप्त हुआ था। इस कारण वह 'महाचण्ड' के नाम से भी प्रमिह था ।' जव उमने जन्म लिया था तव समार मे दीपक के समान प्रकाण हो गया था। इसलिए उमका नाम प्रद्योत रखा गया। बौद्ध ग्रन्थ उदेनवत्यु मे लिखा है कि वह मूर्य की किरणो के समान शक्तिशाली था। तिब्बती वौद्ध अनुश्रुति के अनुसार जिस दिन प्रद्योत का जन्म हुआ उसी दिन बुद्ध का भी जन्म हुआ था । और जिस दिन प्रद्योत राजसिंहासन पर बैठा उसी दिन गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त किया। आवश्यक चूणि', आवश्यक हारिभद्रीयवृत्ति और त्रिपष्टिशलाका पुरुप चरित्र मे आता है कि घण्हप्रद्योत के पास (१) लोह जघ नामक लेखवाहक (१) अग्निमीरु नामक रथ (३) अनल गिरि नामक हस्ति (४) और शिवा नामक देवी, ये चार रत्न थे । १ (क) उज्जैनी इन एशेंट इडिया, पेज १३ (ख) भगवती सूत्र सटीक १३१६, पत्र ११३५ मे उद्रायण के साथ जो महासेन का नाम आया है वह ___ चण्डप्रद्योत के लिए हैं। (ग) उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र वृत्ति मे भी महामेन का उल्लेख हुआ है देखें पत्र २५२-१ २ (क) राकहिल-लिखित लाइफ आव वुद्ध, पृष्ठ ३२ (ख) उज्जयिनी इन ऐंशेन्ट इडिया, पृ० १३,-विमलचरण ३ लाइफ आव वुह, पृ० १७, राकहिल ४ उज्जयिनी इन ऐशेंट इण्डिया, पृ० १३ ५ लाइफ ऑफ वुद्ध, पृ० ३२, की टिप्पणी १ ६ आव० चूर्णि भाग २, पत्र १६० ७ आवश्यकहारि०, वृत्ति ६७३-१ ८ त्रिशप्टि० १०।११।१७३
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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