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A धर्म का निवास-शास्त्रो, ग्रथो और मदिर एवं उपाश्रयो
मे नही, किंतु मनुष्य की आत्मा मे है। पवित्र और सरल
आत्मा मे ही धर्म निवास करता है। - दर्शन का अर्थ-तर्क-वितर्क तथा जड-चेतन की गहरी चर्चा
करना मात्र नही, वस्तुतत्व का दर्शन करना, दर्शन का स्थूल प्रयोजन है। आत्मतत्व का दर्शन अर्थात् अन्तर दर्शन
करना है ही-सच्चा दर्शन है। A सस्कृति-बाह्य वेप-भूषा, परिधान, व्यवहार और वोल
चाल मे नही, किंतु मनुष्य के सभ्य, सुसस्कृत और परिष्कृत विचार तथा तदनुकूल निश्छल व्यवहार मे टपकती है ।
-प्रताप मुनि