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________________ सम-दर्शन-माहात्म्य ऐसे तो वक्ताओ की वाणी भाषणवाजी मे चतुर हुआ करती है । परन्तु 'दर्शनशास्त्र' पर व्याख्यान करना, प्रत्येक वक्ताओ के वश की बात नहीं है। चूँकि दर्शनशास्त्र का अध्ययन अपने आप मे अत्यधिक महत्त्व रखता है। अतएव पूर्ण जानकारी के विना उन्हे पीछी खानी पडती है । तिस पर गी यदि कोई भी दर्शनशाम्न को लेकर उटपटाग उडाने भरता है तो सचमुच ही वह हमी का पात्र होता है। गुरुप्रवर का दर्शन शास्त्र पर प्रशसनीय अध्ययन है। जीवन स्पर्शी प्रवचन पढिए । -सपादक] सज्जनो | यह आर्यभूमि दार्शनिको की पावन क्रीडा स्थली रही है। समय-समय पर अनेकानेक धर्मप्रवर्तक अवतरित हुए। जिन्होने दर्शनशास्त्र की गभीर मीमासा प्रस्तुत की, जिनके अन्त करण से गहरी अनुभव की अनुभूतियाँ नि सृत हुई हैं । उन्हें दर्शन (सिद्धान्त) नाम से पुकारा जाता है । ___ 'दर्शन' शब्द का अर्थ-देखना, 'दर्शन, शब्द का अर्थ "ज सामन्नगहण दसण" और दर्शन शब्द का अर्थ-श्रद्धा एव सिद्धान्त (Vision) कहा गया है । यहाँ दर्शन (सिद्वान्त) की ओर श्रोतागण को मेरा मकेत है । आर्यभूमि पर जितने भी दार्शनिक वृन्द हुए हैं उतने पाश्चात्य संस्कृति सम्यता के वीच नही हुए हैं। कारण स्पष्ट है कि इस धवल धारा का कण-कण महा मनस्वियो की पाद-धूलि से पवित्र हो चुका है। वस्तुत आचार-विचार एव आहार सहिता की सदैव उत्तमता रही है। फल स्वरूप यहाँ का अध्ययनशील तो क्या, निन्तु अनपढ नर-नारी भी आत्मा, परमात्मा, पुण्य, पाप एव पुनर्जन्म पर पूर्ण विश्वास रखता है। यह भारतीय वाङ्गमय को महत्त्वपूर्ण विशेपता है । दर्शनो के विभिन्न भेद इम प्रकार हैं - दर्शनानि षडेवात्र मूल भेद व्यपेक्षया । देवता तत्त्व भेदेन ज्ञातव्यानि मनीषिभि ॥ बौद्ध नैयायिक सांय जैन वैशेषिक तथा । जैमनीयं च नामानि दर्शनानाममून्यहो । -पड्दर्शन समुच्चय वौद्ध, नैयायिक, माव्य, वैशेपिक जैमनी और जैन इस प्रकार मुख्य रूप से पड़ दर्शन अभिव्यक्त किये हैं। ये सभी आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं अतएव इन्हे आस्तिक दर्शन कहा गया है । सभी दार्शनिक विचार धाराओ को दो दर्णन मे विभक्त करता हूँ। क्यो कि मेघावी मानव के लिये हेय क्या और उपादेय क्या? यह भेद विज्ञान भी अत्यावश्यक है । एक मिथ्यादर्शन और दूसरा सम्यक दर्शन। जीवन की विपरीत दृष्टि (मिथ्यात्व) आत्मा अनादिकाल से वनो मे आवद्ध है । वन्धनो से मुक्त होने के पहिले मानव को वधन का स्वल्प समझना आवश्यक है। चूंकि वधन के यथार्य स्वरूप को जाने विना मुक्त होने की कल्पना निरर्थक है । वन्धन का मुख्य कारण मिथ्यादर्शन माना है।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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