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________________ द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाए . वन्दनाजलियां | १२६ गुरु-महिमा (तर्ज–स्याल की ) -श्री प्रकाश मुनि जी म० 'विशारद' गुरु प्रतापमल जी, किस विघि मैं गाऊँ महिमा आपकी ॥टेर।। देवगढ है बहुत सुहाना बसे जहाँ धर्मी लोग । श्रावक जैनी वहुत वहाँ पर अच्छा मिला सुयोग ।।१।। मोडीराम जी नयन सितारे माता दाखाँबाई। ओसवश मे जन्म लियो है देवगढ़ मे आई ॥२॥ वादीमान गुरु 'नन्दलाल जी' पूज्यराज पधारे । आनन्द छाया सारे शहर मे भाग्य सभी के न्यारे ॥३॥ विशाल नेत्र, भुजा प्रवल थी चेहरा बहुत चमकता । समता भाव मे रमण करते भाग्य सभी का दमकता ॥४॥ ज्ञान भानु थे स्पष्टवक्ता चारित्र जिनका सवाया। सरल भद्र, शात-स्वभावी नही, जीवन मे माया ॥५॥ स्याद्वाद शैली के वेत्ता व्याख्यान उनका प्यारा। ऐसे नन्द गुरु जी पधारे चमका भाग्य सितारा ।।६।। वैराग्यमय उपदेश सुनके हृदय प्रताप का भीना। सयम लेने का तव आपने दृढ निश्चय कर लीना ॥७॥ सम्वत् उन्नीसौ साल गुण्यासो दीक्षा समय शुभ आया। मन्दसौर (दशपुर) शहर का देखो चमका पुण्य सवाया ।।८।। उच्च भाव से दीक्षा लीनी ज्ञान ध्यान भी कीना। गुरुवर की सेवा वहु करके यश आपने लीना ॥६॥ गाँव-गाँव व नगर-नगर मे धर्म का ठाठ लगाया। धर्मोपदेश के द्वारा आप ने कई शिष्य बनाया ॥१०॥ प्रसन्न हृदय से रहते हरदम गुरुदेव उपकारी। स्नेह मगठन समता को बस त्रिवेणी प्रसारी ॥११॥ शिष्य रत्न है बहुत आपके एक-एक वड भागी। व्याख्यानी व त्यागी वैरागी शात सरल सौभागी ॥१२॥ शात-दात यह सरोज मुहावे गुरु दर्शन मन भावे । परम प्रतापी सत रत्न के 'प्रकाश मुनि' गुण गावे ॥१३॥
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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