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- महासती विजय कुवर जी वंदन-शत-शतवार
१२४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
अभिनन्दन प्रताप गुरुका करती हर्पित हो शतवार । सुजीवन की गौरव गाथा से चमक रहा जिनका दीदार ।। राजस्थान मेवाड देश की, देवगढ है भूमि प्यारी । मोडीराम जी दाँखा बाई की, कुक्षि गुरु तुमने घारी ॥ आश्विन कृष्णा सातम तिथि अरु प्यारा था वह दिन बुधवार ॥१॥ पन्द्रह वर्ष की आयु मे ही, तुमने गुरु बनाया। वादीमान' मुनि नन्दलाल जी नाम से ख्याति पाया। मन्दसौर मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भव्य दिवस सुखकार ।।२।। अध्ययन आपका गहन गम्भीर, व समता रस मे है भर पूर । गम्कत-प्राकृत हिन्दी भाषा का, ज्ञान आपको है भरपूर ।। स्यादवाद से ओत-प्रोत वाणी मीठी है रस धार ।।३।। मैत्री की गगा ले गुरु जन-जन की प्यास बुझाते । जो भी आपके पास मे आने, ककर से शकर बन जाते ।। 'प्रताप, प्रतापी बनो यही वप्त प्रेरित करता है नर नार ।।४।।
यशोगान
-राजेन्द्रमुनि जी म. "शास्त्री" गुरु का गुण गाले गाले रे मानव जीवन ज्योति जगाले रे ॥टेर।।
देवगढ नगरी मे जन्मे प्रताप गुरु जी सुहाया रे ।
मोडीराम जी दाखा बाई के तुम जाया रे ॥१॥ सवत् गुण्यासी मन्दसौर नगर मे सयम को अपनाया रे । वाद कोविद गुरु नन्दलाल जी का शरणा पाया रे ॥२॥
सस्कृत, प्राकृत हिन्दी का अभ्यास गुरु ने वढाया रे ।
कुछ ही दिनो मे गुरु सेवा से ज्ञान पाया रे ॥३॥ मगलकारी दर्शन गुरु का जो कन्ता सुख पाता रे। . पावन कर्ता अपने तन को शिव सौख्य मनाता रे ॥४॥
सादा जीवन रग्वते गुरुवर प्रेम का पाठ पढ़ाते रे ।
सत्य-शिव विचार से गुरु कदम वढाते रे ।।५।। सरल, सतोपी, सेवाभावी सद्वक्ता सुविचारी रे। सदा शास्त्र मे रत रहते हैं गुण भण्डारी रे ||५||
गुरु ज्ञान के दाता हैं ये महान् जगत् के दयालु रे ।
सव सतो के हृदय हार है बडे कृपालु रे ।।७।। मुझे गुरु ने निहाल कीना सयम का पद दीना रे। अमूल्य रत्न त्रय द करके जग-यश लीना रे ।।८।।
रविवार को सन् बहत्तर मे प्रेम से भजन बनाया रे । श्री गोदा मे राजेन्द्र मुनि ने शुभ दिन गाया रे ।।६।।