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________________ द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाए वन्दनाञ्जलिया | १२१ गुरु-गुण पुष्प -तपस्वी श्री अभयनुनि जी महाराज [तर्ज --कोरो काजलियो ] गुण गाऊँ मैं हर वार, गुरुवर प्यारे रे ।।टेर।। सम्बत् उगणी सौ पैसठ माही, आसोज महीनो सार |गुरु० ॥१॥ कृष्णा सातम सोमवार दिन, जन्म लियो हितकार ।।गुरु० ॥२॥ नगर देवगढ मायने, है गाधी गोत्र सुखकार ।।गुरु० ॥३॥ मात-पिता परिवार मे, छायो है हर्ष अपार ।।गुरु० ।।४।। प्रतापमल जी नाम आपका, है प्रियकारी श्रेयकार ||गुरु० ॥५॥ उगणीसौ गुण अस्सी मे, है मृगशिर मास उदार ।।गुरु० ॥६।। पूज्य गरु नन्दलाल जी, है महिमावन्त अपार |गुरु० ॥७॥ मन्दसौर, शुभ शहर मे, लीनो है सयम भार ।।गुरु० ॥८॥ ज्ञानी ध्यानी गुणवन्ता, मैं नाम जपू हर वार ।।गुरु० ॥६॥ सहनशीलता जीवन मे, भरपूर भरी नही पार ।।गुरु० ॥१०॥ तप-जप सयम निर्मला, पाले है शुद्ध आचार ।।गुरु० ।।११।। जुग जुग जीवो गुरुवर मेरे, श्रद्धा पुष्प चरणार ।।गुरु० ॥१२।। शिष्य अभय मुनि कर जोडी, करे वन्दन बारम्बार ।।गुरु० ।।१३।। गुरु-भक्ति-गीत –महासती प्रभावती जी, सुशीला कुवर जी (तर्ज-काची रे काची रे प्रीति मेरी काची ) आओ रे, आओ रे शीष झुकाओ प्रताप के गुण गाओ सवत पैसठ मे जन्म लिया, 'देवगढ' को गुरुवर ने पावन किया, __आश्विन का महिना, जन्मे नगीना सप्तम का शुभ वार रे एए आओ परम प्रतापी गुरु 'नन्द' कीना मदसौर नव्यासी मे सयम लीना 'मोडीराम' के लाला, 'दाखा' के व्हाला, गाधी गौत्र उजवाल रे एए आओ ३. , तप-तेज किरणें दमक रही सौम्य सी सूरत चमक रही ज्ञान के हैं दरिया, गणो से भारया, प्रेम का पुञ्ज विशाल रे एए. आओ मुनि मडल मे गुरु सोहे जैसे तारो मे चन्दा सोहे ऐसे आर्या-प्रतिभा" और "सुशीला" भक्ति सुमन चढाएं रे एए आओ
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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