SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ | मुनि श्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ श्री प्रताप-प्रभा -मरुधरकेशरी प्रवर्तक प० रत्न श्री मिश्रीमल जी म० सोरठा मिला मुजे इकवार, मरुधर सोजत रोड पै, संत सेवा सश्रीक, जीवन मे की जोर री, मैं परख्यो धर प्यार, मोती तू मेवाड रो ॥१॥ अरु साधना ठीक, मोती तू मेवाड रो ॥२॥ निज कर करी तैयार, शिष्य मडली सातरी । __ अर्को मुजस अपार, मोती तू मेवाड रो॥३।। वाचक कला विज्ञान सुख मुनि से शीखी सदा, प्रकटयो घर पर ताप, पिण फैल्यौ मुनि वेष मे, दीवाकरिय दरम्यान, मोती तू मेवाड रो ॥४॥ सरल हृदय रो साफ, मोती तू मेवाड रो॥शा रति अतिवत रमेश, मरुधर मनि हाथे चढी । उन्नती बढे हमेश, मोती तू मेवाड रो॥६॥ छाने रहा छमेस, चवडे अव चमक्यो मुने । सजम रो है सार, जिनमारग उजवालजो। अनुग्रह करी तूर्येश, मोती तू मेवाडरो ।।७॥ उज्ज्वल रख आचर, वडशाखा ज्यो विस्तरो।।। प्रताप के प्रति -कविरत्न श्री चन्दन मुनि मेदपाट भूषण । गत दूषण । जियो और जीने का जग को शातमूर्ति मुनिराज प्रताप | देते हो सदेश प्रताप | ज्यो चन्दन हरता है तन का इसी भावना से कटते हैं हरो जगत का आप त्रिताप ॥१॥ कोटि जन्म कृत-कारित पाप ॥२॥ सहज साधुता, हृदय सरलता स्वय सयमी ही सयम से चिन्तन-मनन गहन पाया। रहने का कह सकता है। गुरुवर 'नन्दलाल' की पाई असयमी आई विपदाए सिर पर शुचि शीतल छाया ।।३।। सम से कब सह सकता है ? ॥४॥ सयम और सयमी का ही लिया न जाता दिया न जाता अभिनन्दन करना उत्तम । सयम सहजवृत्ति का नाम । किया गया जो सयम के हित सहज साधुता द्वारा वश मे उत्तम कहलाएगा श्रम ||५|| हो सकता है इन्द्रिय-ग्राम ।।६।। 'चन्दन' की श्रद्धाञ्जलि स्वीकृत करना भाव सहित भगवन् । श्रद्धास्पद वे होते हैं जो होते राग - रहित भगवन् ।७।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy