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________________ अभिनन्दन : शुभकामनाएं : वंदनाञ्जलियां प्रातः स्मरणीय प्रखर वक्ता पंडित मुनि श्री प्रतापमल जी म. सा. पुनीत चरणो से अभिनन्दन-पत्र-१ वन्दनीय ! विक्रम स० २००७ वीर स० २४७६ मे आपने हमारे ग्राम वकानी (कोटा) मे चातुर्मास की जो अनुकम्पा की है उसके अपार हर्ष का फल अवर्णनीय है । हमारा नगर वकानी आभार प्रदर्शित करता हुआ चरणो मे नत-मस्तक है । धर्म-प्राण । आपने स० १९६५ मे देवगढ (मेवाड) की वीर भूमि मे जन्म लिया और स० १९७६ मे मन्दसौर मे गुरुवर्य श्री वादकोविद प्रखरपडित श्री श्री १००८ मुनि श्री नन्दलाल जी महाराज से दीक्षा लेकर अब तक जैन-जनेतर समाज का जो उपकार किया है, वह अविस्मरणीय है। आदर्श-साघु । सासारिक वैभव को ठुकरा कर आपने जो आदर्श पथ ग्रहण किया है वह हँसी खेल नही है। हम मामारिक क्षणिक त्याग (वारह व्रत) का आशिक पालन करने मे भी अपने को असमर्थ पाते हैं, किन्तु आप पचमहाव्रत का पालन कर रहे हैं । वास्तव मे ससार का दुख ऐसे ज्ञानी और ध्यानी साधु ही नष्ट कर सकते हैं । आप के पदार्पण से हम कृतकृत्य हो गये है। सुयोग्य गुरुवर । आत्मार्थी मुनि श्री वसन्तीलाल जी म०, व तपस्वी मुनि श्री गौरीलाल जी म० जैसे सुयोग्य और विनीत शिप्यो ने आप को सुयोग्य गुरु प्रमाणित कर दिया है। आज दोनो सन्त आप की सेवा में सप्रेम आत्मोन्नति मे रत हैं, यह परम हर्ष का विपय है। नवयुग प्रेमी। आज स्वतन्त्र भारत को रूढिप्रेमी, एकान्तवादी, अन्धविश्वामो के भक्त साधुओ की आवश्यकता नहीं है। परम हर्प का विषय है कि आप इस कसौटी पर भी खरे उतरे है । आप रूटिंवाद के सहारक, अनेकान्तवाद के समर्थक और अन्धविश्वासो के विरोधी के रूप मे सर्व-धर्म समन्वय की भावना से ओत-प्रोत सच्चे देश समाज और धर्म सेवक साधु हैं। साधु समाज के लिये आपके आदर्श अनुकरणीय हैं। साम्प्रदायिकता की गन्ध आप से कोसो दूर है और यही वर्तमान युग की आवश्यकता है । यही कारण है कि आप के मनोहर शिक्षाप्रद व्याख्यानो से जैन, हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मवालो ने सहर्प लाभ उठाया है।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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